कम लागत में अधिक लाभ की सम्भावना
रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. सुशील कुमार सिंह ने बुंदेलखंड के किसानों को धनिया (धना) की खेती अपनाकर आमदनी बढ़ाने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि धनिया मसाला बीजीय समूह की एक प्रमुख फसल है, जिसकी खेती यूपी, एमपी, राजस्थान, महाराष्ट्र और बिहार में बड़े पैमाने पर होती है।
बुंदेलखंड की मिट्टी धनिया उत्पादन के लिए उपयुक्त
डॉ. सिंह ने कहा कि क्षेत्र की दोमट और काली चिकनी मिट्टी जाड़े के मौसम में धनिया उत्पादन के लिए अत्यंत अनुकूल है। खासकर काली मिट्टी में उगा धनिया अपनी सुगंध और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है।
40–45 दिन में तैयार हरी पत्तियाँ
धनिया की हरी पत्तियाँ लगभग 40–45 दिन में तैयार हो जाती हैं।
- बीज आवश्यकता: 18–20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
- संभावित उपज: 50–60 क्विंटल हरी धनिया प्रति हेक्टेयर
प्रमुख किस्में
- अजमेर धनिया-1 (सफेद चूर्णिता रोग प्रतिरोधी, पत्तियों व दानों दोनों के लिए)
- अजमेर धनिया-2
- राजस्थान धनिया-435
- राजस्थान धनिया-436
- अर्का ईशा
सिंचाई व देखभाल
- पहली सिंचाई बुवाई के 12–15 दिन बाद
- खेत में जलभराव न होने दें
- माहू नियंत्रण: इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एससी (250–300 ml) को 200–250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव
दाने वाली फसल के लिए पंक्ति दूरी 30–35 सेमी और पौध दूरी 10–15 सेमी रखनी चाहिए।
115–120 दिन में दाने की फसल
उचित प्रबंधन से किसान 12–15 क्विंटल दाना प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त कर सकते हैं। यदि बुवाई 20 नवंबर तक की जाए तो परिणाम और बेहतर मिलते हैं।
डॉ. सिंह ने कहा कि धनिया की खेती कम लागत और कम जोखिम वाली है, जो किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी का एक उपयुक्त विकल्प साबित हो सकती है।




