कांकेर के किसान ‘सेमियालता मॉडल’ अपनाकर लाख का कर रहे उत्पादन
छत्तीसगढ़ का कांकेर जिला लाख उत्पादन में प्रदेश का नंबर-वन बन गया है। हर साल करीब 7 हजार मीट्रिक टन लाख का उत्पादन यहां होता है। पहले लाख की खेती पारंपरिक रूप से कुसुम और बेर के पेड़ों पर की जाती थी, लेकिन अब किसान तेजी से ‘सेमियालता मॉडल’ की ओर बढ़ रहे हैं, जिसने उन्हें अधिक उत्पादन और बेहतर आय का विकल्प दिया है।
कम लागत में प्रति एकड़ एक लाख तक की कमाई
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सेमियालता पौधे पर की जाने वाली लाख खेती में शुरुआती खर्च के बाद लागत बहुत कम रह जाती है।
- प्रति एकड़ 1 लाख रुपये तक की आय
- उच्च गुणवत्ता वाला लाख
- जल्दी उत्पादन और बेहतर रखरखाव
कांकेर के किसान पुरुषोत्तम मंडावी ने बताया कि उन्होंने शुरुआत में 120 पौधे लगाए। आज उनका वार्षिक टर्नओवर 8 से 10 लाख रुपये तक पहुंच चुका है। इस मॉडल ने जिले को तेजी से समृद्ध किया है।
देश भर के किसानों को दिया जा रहा बीज
कांकेर की सफलता को देखते हुए प्रदेश के लगभग 1200 किसान यहां के किसानों से जुड़ चुके हैं। लाख उत्पादन के लिए बीज का आदान-प्रदान भी लगातार बढ़ रहा है। किसानों का कहना है कि सेमियालता मॉडल ने लाख की खेती को स्थिर आय का स्रोत बना दिया है।
देश का सर्वश्रेष्ठ ‘कुसुमी लाख’
जिला कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ. बीरबल साहू के अनुसार, कांकेर में देश का सबसे उच्च गुणवत्ता वाला ‘कुसुमी लाख’ तैयार होता है। बीज की कमी दूर करने के लिए सेमियालता का उपयोग शुरू किया गया और वर्तमान में 60–70 एकड़ क्षेत्र में इसकी फसल लगाई गई है।
किसानों के लिए नया उभरता मॉडल
सेमियालता मॉडल के कारण लाख उत्पादन अब सीमित पेड़ों पर निर्भर नहीं रहा। कम लागत, अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता ने इसे किसानों के लिए तेजी से लोकप्रिय विकल्प बना दिया है।




