सोनिया गांधी ने पर्यावरणीय गिरावट पर जताई चिंता, केंद्र सरकार को सुझाए कड़े उपाय
नई दिल्ली, 03 दिसंबर। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने देश में बढ़ती पर्यावरणीय गिरावट को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने आरोप लगाया कि अवैध खनन, वनों की कटाई, पर्यावरणीय कानूनों में ढील और प्रदूषण नियंत्रण में लापरवाही के कारण भारत एक बड़े पारिस्थितिक संकट की ओर बढ़ रहा है।
सोनिया गांधी ने अपने लेख में कहा कि अरावली पर्वतमाला को खनन के लिए लगभग खुला छोड़ देना और 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को खनन-प्रतिबंध से बाहर करना एक खतरनाक कदम है। इससे अरावली की 90 प्रतिशत पहाड़ियां खतरे में आ गई हैं, जिनका बड़ा हिस्सा पहले ही अवैध खनन से प्रभावित है।
दिल्ली-एनसीआर का विषैला स्मॉग स्थायी संकट
उन्होंने कहा कि दिल्ली-एनसीआर की जहरीली हवा अब एक “स्थायी सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट” बन चुकी है। आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ दस बड़े शहरों में वायु प्रदूषण से हर साल लगभग 34 हजार मौतें होती हैं। सर्दियों में स्मॉग से हालात और बिगड़ जाते हैं।
भू-जल में बढ़ता यूरेनियम स्तर भी चिंता का विषय
उन्होंने केंद्रीय भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा कि दिल्ली के 13–15% भू-जल नमूनों में यूरेनियम की मात्रा सुरक्षित सीमा से अधिक पाई गई है। पंजाब और हरियाणा में स्थिति और गंभीर है, जो बताता है कि भारत हवा, पानी और जंगल—तीनों मोर्चों पर संकट का सामना कर रहा है।
पर्यावरण कानूनों में ढील पर सवाल
सोनिया गांधी ने वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2023, ड्राफ्ट ईआईए 2020 और तटीय विनियमन नियम 2018 को ऐसे फैसले बताया जिन्होंने पर्यावरण सुरक्षा तंत्र कमजोर किया है और बड़े औद्योगिक प्रोजेक्ट्स को बिना पर्याप्त जांच के आगे बढ़ाया है।
कड़े उपायों की मांग
उन्होंने सुझाव दिया कि देश को पर्यावरण संरक्षण के लिए नई प्रतिबद्धता की जरूरत है।
इनमें शामिल हैं—
- अवैध खनन पर सख्त कार्रवाई
- वनों की कटाई पर तत्काल रोक
- कमजोर किए गए पर्यावरण कानूनों की समीक्षा
- आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को मजबूत करना
सोनिया गांधी ने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण और स्थानीय समुदायों की भागीदारी के बिना भारत को स्वच्छ हवा, सुरक्षित पानी और टिकाऊ भविष्य नहीं मिल सकता।



