प्राकृतिक ज्ञान परंपरा और आधुनिक प्रौद्योगिकी का एकीकरण समय की आवश्यकता: राज्यपाल
जयपुर/जोधपुर, 4 दिसंबर। राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान तब तक पूर्ण नहीं हो सकता, जब तक वह भारतीय ज्ञान परंपरा और प्राचीन वैज्ञानिक विचारों के साथ समन्वय स्थापित न करे। वे गुरुवार को जोधपुर में मारवाड़ इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। यह संगोष्ठी जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित की गई।
राज्यपाल ने कहा कि पेड़-पौधे अत्यंत संवेदनशील जीव हैं। वे प्रकाश, तापमान, आर्द्रता, रोग और पर्यावरणीय बदलावों पर वैज्ञानिक ढंग से प्रतिक्रिया करते हैं। उन्होंने बताया कि पौधों में जीवन और चेतना होती है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वृक्ष अपनी जड़ों से जल लेते हैं और जड़ों में औषधि देने पर उनका उपचार संभव है, जो उनकी वैज्ञानिक संरचना को दर्शाता है।
उन्होंने भारत की प्राचीन वनस्पति विज्ञान परंपरा का उल्लेख करते हुए महर्षि पाराशर की ‘वृक्ष आयुर्वेद’ का संदर्भ दिया। उन्होंने कहा कि प्रोटोप्लाज्म, कोशिका संरचना और ऊर्जा निर्माण जैसे विषयों पर भारतीय ग्रंथों में सिद्धांत मिलते हैं, जिनकी पुष्टि बाद में आधुनिक विज्ञान ने की। यह हमारे वैज्ञानिक इतिहास की समृद्ध विरासत का प्रमाण है।
राज्यपाल ने कहा कि डीएनए-आरएनए, प्रोटीन संरचना और आधुनिक आणविक तकनीकों की दिशा में भारतीय पारंपरिक ज्ञान महत्वपूर्ण आधार दे सकता है। उन्होंने वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह किया कि वे भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक तकनीक का एकीकृत शोध ढांचा तैयार करें। उन्होंने सुझाव दिया कि विश्वविद्यालय में प्राचीन वनस्पति अध्ययनों और आधुनिक आणविक जीवविज्ञान का संयुक्त शोध कार्यक्रम शुरू किया जाए।
उन्होंने पर्यावरण संकट, ऊर्जा चुनौतियों और जैव विविधता संरक्षण का उल्लेख करते हुए कहा कि इन समस्याओं के समाधान में कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने वैज्ञानिकों से अपील की कि शोध को समाजहित और प्रकृति संरक्षण से जोड़कर आगे बढ़ाया जाए।




