⚖️ हाईकोर्ट ने दंड को बताया असंगत
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मोती लाल नेहरू राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान (एमएनएनआईटी) के पूर्व प्रवक्ता राजेश सिंह की बर्खास्तगी को “आश्चर्यजनक रूप से कठोर” करार दिया है।
कोर्ट ने संस्थान को निर्देश दिया है कि वह अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर लघु दंड देने की संभावना पर विचार करे।
👨⚖️ किसने दिया आदेश
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने राजेश सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
🏫 मामले की पृष्ठभूमि
राजेश सिंह की नियुक्ति वर्ष 1999 में मोती लाल नेहरू राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान के कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रवक्ता के पद पर हुई थी।
वर्ष 2003 में विभाग की एक पूर्व छात्रा ने निदेशक से शिकायत की थी, जिसमें उसने शारीरिक और भावनात्मक उत्पीड़न के आरोप लगाए।
🔍 जांच और कार्रवाई
संस्थान द्वारा गठित पांच सदस्यीय समिति किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी।
इसके बाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की एकल जांच समिति बनाई गई, जिसने नैतिकता के उल्लंघन का हवाला देते हुए बर्खास्तगी की सिफारिश की।
इसी आधार पर बोर्ड ऑफ गवर्नेंस ने सेवा से बर्खास्त कर दिया।
⚠️ कोर्ट की अहम टिप्पणियां
हाईकोर्ट ने कहा कि—
बर्खास्तगी का एकमात्र आधार नैतिकता बताया गया
यौन शोषण का मामला सिद्ध नहीं हुआ
याची का पूर्व सेवा रिकॉर्ड निर्विवाद रहा
दंड, आरोप की तुलना में अत्यधिक और असंगत है
कोर्ट ने यह भी कहा कि नैतिकता का मूल्यांकन पूरे सेवा आचरण के आधार पर होना चाहिए, न कि किसी एक व्यक्तिगत आरोप पर।
📌 अंतिम निर्देश
हाईकोर्ट ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी को निर्देश दिया कि वह पूरे मामले पर पुनः विचार कर, न्यायालय के निष्कर्षों को ध्यान में रखते हुए लघु दंड देने पर निर्णय करे।



