🎙️ जब रेडियो और भाषण साथ-साथ चलने लगे
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के उर्मिला पार्क में एक विशाल जनसभा को संबोधित कर रहे थे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी। अचानक माइक में तकनीकी खराबी आ गई और आकाशवाणी की आवाज़ मंच से गूंजने लगी। लोग शोर मचाने लगे—“आवाज़ ठीक करो!”
तभी अटल जी ने मुस्कुराते हुए कहा,
“क्या मेरी आवाज़ साफ सुनाई दे रही है?”
भीड़ से उत्तर आया—“हाँ!”
अटल जी बोले—
“तो एक कान से ऑल इंडिया रेडियो सुनिए और एक कान से मेरा भाषण।”
बस फिर क्या था—हंसी और तालियों के बीच माहौल शांत हो गया और संयोग से तकनीकी गड़बड़ी भी खत्म हो गई।
यह संस्मरण अटल जी के अभिन्न मित्र और भारतीय नागरिक परिषद के अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश अग्निहोत्री ने साझा किया।
🤝 पीठ पीछे नहीं, आमने-सामने की राजनीति
चन्द्र प्रकाश अग्निहोत्री ने एक और प्रसंग सुनाया। जब जनसंघ के प्रदेश अध्यक्ष स्व. रामप्रकाश गुप्त और अटल जी लखनऊ में थे, तब किसी ने संगठन की चर्चा पीठ पीछे शुरू कर दी।
अटल जी ने तुरंत कहा—
“रुको! रामप्रकाश जी को बुलाइए। संगठन की बात सामने-सामने होती है।”
यह अटल जी की नेतृत्व शैली थी—स्पष्ट, ईमानदार और पारदर्शी।
🧡 परिवार जैसा रिश्ता
अटल जी जब भी कार्यकर्ताओं से मिलते थे या किसी के घर जाते थे, तो ऐसा लगता था जैसे परिवार का कोई सदस्य आया हो। यही अपनापन उन्हें जनता का नेता बनाता था।




