🛡️ पेसा नियमावली को मिली कैबिनेट की मंजूरी
झारखंड सरकार द्वारा पेसा नियमावली को मंजूरी दिए जाने पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने इसे आदिवासी और मूलवासी समाज की अस्मिता की ऐतिहासिक जीत बताया है।
रांची में आयोजित प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि पेसा केवल एक कानून नहीं बल्कि आदिवासी जीवनशैली, संस्कृति, प्रकृति और मातृशक्ति की रक्षा का मजबूत आधार है।
🌱 आदिवासी लोकतंत्र की परंपरा का सम्मान
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि मानव इतिहास की पहली लोकतांत्रिक व्यवस्था आदिवासी समाज से निकली है, जहां सामूहिक निर्णय और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की परंपरा थी। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान में भाजपा लोकतंत्र को कमजोर कर अधिनायकवादी व्यवस्था थोपने का प्रयास कर रही है, जबकि पेसा कानून ग्रामसभा को सर्वोच्च अधिकार देता है।
🏞️ कॉरपोरेट लूट पर लगेगा ब्रेक
अरावली पर्वत क्षेत्र का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेट के हवाले करना आदिवासी हितों के खिलाफ है। पेसा कानून ऐसे निर्णयों पर रोक लगाने में सक्षम है।
⚖️ समता जजमेंट की भावना पर आधारित
उन्होंने बताया कि पेसा अधिनियम-1996 सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक समता फैसले की भावना पर आधारित है, जिसमें ग्राम सभा की सहमति और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अनिवार्य किया गया था।
❓ भाजपा पर सवाल
सुप्रियो भट्टाचार्य ने पूर्व मुख्यमंत्रियों बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतने वर्षों की सत्ता के बावजूद उन्होंने पेसा को लागू क्यों नहीं किया।
🏛️ हेमंत सरकार की बड़ी पहल
उन्होंने कहा कि हेमंत सोरेन सरकार ने सत्ता में आते ही एक वर्ष के भीतर पेसा नियमावली लागू कर आदिवासी–मूलवासी समाज को अधिकार और पहचान दी।
अब झारखंड में शिक्षा, रोजगार और विकास की दिशा ग्राम सभा तय करेगी, न कि अफसरशाही।
📌 ऐतिहासिक मील का पत्थर
भट्टाचार्य ने पेसा को झारखंड में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा कि यह राज्य के सामाजिक और सांस्कृतिक भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित होगा।




