वाराणसी में गंगा महासभा का बड़ा ऐलान, गंगा के लिए समर्पित होंगे अगले तीन वर्ष
भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की जयंती के अवसर पर वाराणसी में आयोजित गंगा महासभा की राष्ट्रीय बैठक में गंगा संरक्षण को लेकर ऐतिहासिक निर्णय लिया गया। इस मौके पर गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने देशभर के कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वे आगामी तीन वर्ष गंगाजी को समर्पित करें।
स्वामी जीतेन्द्रानन्द ने कहा कि महामना मालवीय जी का गंगा रक्षा संघर्ष आज भी हमें प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा—
“विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए बिना देश का भविष्य सुरक्षित नहीं हो सकता। गंगा महासभा महामना के विचारों की जीवित विरासत है।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि “गंगा बचेगी तो संस्कृति बचेगी और संस्कृति बचेगी तो राष्ट्र सशक्त बनेगा।”
राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में लिए गए अहम निर्णय
गंगा महासभा की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक काशी के ब्रह्मनिवास, सिद्धगिरिबाग में संपन्न हुई। बैठक का उद्घाटन मां गंगा, महामना मालवीय और स्वामी सानंद के चित्रों पर माल्यार्पण कर किया गया।
बैठक में स्वामी जीतेन्द्रानन्द ने कई महत्वपूर्ण मांगें रखीं, जिनमें शामिल हैं—
- गंगा को अतिक्रमण से मुक्त किया जाए
- नदी क्षेत्र का लैंड डिमार्केशन शीघ्र हो
- कछार क्षेत्र में केवल कृषि कार्य की अनुमति
- घाटों की स्वच्छता के लिए जनजागरण अभियान
उन्होंने बताया कि नासिक और उज्जैन कुंभ में गंगा महासभा सेवा, संवाद, संगठन और तकनीक के माध्यम से सक्रिय भूमिका निभाएगी।
आगामी राष्ट्रीय कार्यक्रमों की घोषणा
राष्ट्रीय संगठन महामंत्री आचार्य गोविंद शर्मा ने नई कार्यकारिणी की घोषणा करते हुए आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी—
- गंगा सप्तमी पर प्रयागराज में 1000 गंगा भक्तों का राष्ट्रीय सम्मेलन
- 7-8 मार्च को प्रयागराज में गंगा महासभा का प्रशिक्षण शिविर
- 3-4 अप्रैल को नासिक में राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक
- संस्कृति संसद 2026 – 3 से 5 नवंबर, काशी में
इस सम्मेलन में गंगा बेसिन राज्यों— उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के प्रकृति व संस्कृति से जुड़े प्रमुख लोग भाग लेंगे।
गंगा संरक्षण को लेकर राष्ट्रव्यापी संकल्प
इस अवसर पर कई वरिष्ठ विद्वान, समाजसेवी और गंगा कार्यकर्ता मौजूद रहे। सभी ने गंगा संरक्षण को लेकर एकजुट होकर अभियान चलाने का संकल्प लिया।
गंगा महासभा का यह निर्णय आने वाले वर्षों में भारत की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय चेतना को नई दिशा देने वाला कदम माना जा रहा है।




