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मकर संक्रांति पर तत्तापानी में स्नान और तुलादान के लिए उमड़े श्रद्धालु

शिमला, 14 जनवरी (हि.स.)। मकर संक्रांति के अवसर पर मंगलवार को हिमाचल प्रदेश के शिमला और मंडी जिले की सीमा पर स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तत्तापानी में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। हजारों श्रद्धालु यहां पारंपरिक स्नान और तुलादान करने के लिए पहुंचे। तत्तापानी में मकर संक्रांति पर स्नान और दान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन यहां स्नान करने से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है बल्कि शरीर के चर्म रोग भी समाप्त हो जाते हैं।

तत्तापानी में मकर संक्रांति पर स्थानीय प्रशासन द्वारा विशेष प्रबंध किए गए हैं। स्नान के बाद श्रद्धालु मंदिरों में पूजा-अर्चना कर तुलादान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते देखे गए। तत्तापानी के गर्म पानी के चश्मों के प्रति श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है। यहां सालभर स्नान करने वाले लोग न केवल पुण्य कमाने की इच्छा से आते हैं, बल्कि चर्म रोगों से निजात पाने की आशा भी रखते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो इन चश्मों के पानी में सल्फर और अन्य खनिज पाए जाते हैं जो त्वचा संबंधी समस्याओं को कम करने में सहायक होते हैं।

तत्तापानी पहुंचे श्रद्धालुओं ने इस अनुभव को अद्भुत और आत्मिक शांति प्रदान करने वाला बताया। एक स्थानीय पुजारी ने कहा कि मकर संक्रांति पर तत्तापानी में स्नान और दान करने का महत्व शास्त्रों में वर्णित है। यहां स्नान करने से शरीर और आत्मा दोनों शुद्ध होते हैं। वहीं एक श्रद्धालु ने कहा कि हर साल मैं यहां आता हूं। तुलादान करने से मन को संतोष और शांति मिलती है। यह स्थान चमत्कारी है।

तत्तापानी में स्नान और दान की परंपरा सदियों पुरानी है। बैसाखी और लोहड़ी जैसे अन्य त्योहारों पर भी यहां बड़ी संख्या में लोग स्नान करने आते हैं। लेकिन मकर संक्रांति का महत्व सबसे ज्यादा माना जाता है।

बता दें कि मकर संक्रांति पर तत्तापानी में तुलादान करने का विशेष महत्व है। श्रद्धालु अपनी राशि के अनुसार दान सामग्री का वजन तोलकर नवग्रहों की शांति के लिए दान करते हैं। माना जाता है कि तुलादान करने से जीवन के कष्ट कम होते हैं और परिवार में सुख-शांति आती है। तत्तापानी को ऋषि जमदग्नि और उनके पुत्र परशुराम की तपोस्थली के रूप में भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम ने यहां स्नान करने के बाद अपनी धोती निचोड़ी थी। जहां-जहां धोती के छींटे गिरे वहां गर्म पानी के चश्मे फूट पड़े। ये चश्मे आज भी तत्तापानी की पहचान हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि इन गर्म पानी के चश्मों में स्नान करने से त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा मिलता है।

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