ढाका, 3 अक्टूबर।
भाषा आंदोलन कार्यकर्ता, कवि, निबंधकार और प्रतिष्ठित रवींद्र शोधकर्ता अहमद रफीक का 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे गुरुवार देर रात ढाका के बर्डेम जनरल अस्पताल के आईसीयू में अंतिम सांस ली। वृद्धावस्था जनित बीमारियों से जूझ रहे रफीक को बुधवार दोपहर आईसीयू में लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था।
अहमद रफीक का जन्म 12 सितंबर, 1929 को शाहबाजपुर, ब्राह्मणबरिया में हुआ था। उन्होंने 1952 के भाषा आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के छात्रों के बीच इसे प्रेरित किया। ढाका मेडिकल कॉलेज के छात्र होने के नाते 1954 में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था।
रफीक ने अपने जीवन को लेखन, शोध और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए समर्पित कर दिया। 1958 में उन्होंने अपनी पहली पुस्तक “शिल्पो सोंगस्कृति जीबोन” (कला, संस्कृति और जीवन) प्रकाशित की। उनकी सक्रियता और शोध के लिए उन्हें एकुशे पदक और बांग्ला अकादमी साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
रवींद्र अध्ययन में उनके योगदान को व्यापक रूप से मान्यता मिली। कोलकाता स्थित टैगोर शोध संस्थान ने उन्हें “रवींद्र-तथोचारजो” की उपाधि प्रदान की। अहमद रफीक ने सौ से अधिक पुस्तकें लिखी और संपादित की, जिनमें साहित्य, संस्कृति और समाज पर महत्वपूर्ण कार्य शामिल हैं।
उनके निधन से साहित्य, संस्कृति और भाषा आंदोलन के क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई है। उनके योगदान ने आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन और प्रेरणा का कार्य किया है।