🇮🇳 जब राष्ट्रधर्म बना जीवन का संकल्प
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन केवल राजनीति तक सीमित नहीं था, बल्कि वह राष्ट्रसेवा और विचारधारा का प्रतीक था। वर्ष 1947 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन प्रांत प्रचारक भाऊराव देवरस और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के मार्गदर्शन में शुरू हुई पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ उनके विचारों की पहली सशक्त अभिव्यक्ति बनी।
📜 राष्ट्रधर्म की ऐतिहासिक शुरुआत
31 अगस्त 1947 को श्रावणी पूर्णिमा के दिन राष्ट्रधर्म का पहला अंक प्रकाशित हुआ, जिसमें अटल जी की प्रसिद्ध कविता “हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन” और दीनदयाल उपाध्याय का लेख “चिति” शामिल था। पत्रिका इतनी लोकप्रिय हुई कि पहले ही अंक की 3000 प्रतियां हाथों-हाथ बिक गईं।
उस समय संसाधनों की कमी थी। जब कर्मचारी थक जाते, तब अटल जी स्वयं हाथ से मशीन चलाते थे। वे साइकिल पर पत्रिकाओं के बंडल लेकर रेलवे स्टेशन और एजेंटों तक पहुंचाते थे।
🕊️ अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम भी राष्ट्रधर्म को समर्पित
वर्ष 2007 में जब ‘जनसंघ और भाजपा विशेषांक’ का लोकार्पण होना था, तब अटल जी अस्वस्थ थे। इसके बावजूद उन्होंने दिल्ली में 7 अगस्त 2007 को आडवाणी जी के साथ उसका विमोचन किया। यही उनका अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम सिद्ध हुआ।
✨ राष्ट्रधर्म से राष्ट्र नेतृत्व तक
1947 में राष्ट्रधर्म से शुरू हुई उनकी वैचारिक यात्रा, 2007 में उसी मंच पर पूरी हुई। यह केवल संयोग नहीं, बल्कि उनके पूरे जीवन का संदेश था—
“राष्ट्र पहले, स्वयं बाद में।”




