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मोक्ष तीर्थ मणिकर्णिकाघाट पर धधकती चिताओं के बीच खेली गई चिता भस्म की होली

वाराणसी, 11 मार्च (हि.स.)। काशी की पवित्र भूमि, जो जीवन और मृत्यु के बीच की अनंत कड़ी है,ने इस वर्ष भी एक अद्भुत दृश्य का साक्षात्कार कराया। रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन मंगलवार को मोक्ष की धरती मणिकर्णिकाघाट पर चिता भस्म की होली का आयोजन किया गया, जो न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान था, बल्कि जीवन और मृत्यु के साक्षात अनुभव को महसूस कराने वाला अतुलनीय दृश्य था।

महाश्मशान घाट पर जहां एक ओर चिता की लपटें सुलग रही थीं, वहीं दूसरी ओर शिव भक्तों, नागा संतों और अघोरियों के साथ हजारों युवा ‘हर-हर महादेव’ के उद्घोष में डूबे हुए थे। विशाल डमरूओं की निनाद के बीच चिता भस्म और अबीर से होली खेलने का यह दृश्य जैसे जीवन के अंतिम और प्रारंभिक बिंदु का मिलन था। इस दौरान, ‘खेलें मसाने में होरी दिगंबर’ गीत पर युवा थिरकते रहे, जबकि घाट के वातावरण में एक अद्वितीय ऊर्जा का संचार हो रहा था।

मणिकर्णिका घाट पर इस अनोखी होली में भाग लेने के लिए श्रद्धालुओं और पर्यटकों का हुजूम उमड़ पड़ा था। घाट के नीचे एक ओर जहां शवों की कतार लगी थी, वहीं दूसरी ओर ‘हर-हर महादेव’ के उद्घोष ने सबको एक नई दिशा दी। यह दृश्य काशी के उन गहरे और गूढ़ संदेशों को भी समझाता है, जो जीवन और मृत्यु के बीच के रिश्ते को एक नई दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करते हैं।

काशी में यह मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के गौने में उनके पिशाच, भूत-प्रेत, औघड़, अघोरी और संन्यासी शामिल नहीं हो पाते, क्योंकि बाबा के सभी भक्त निर्विकार होते हैं। बाबा इन्हें निराश नहीं करते और गौने के अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर इन भूत-प्रेतों के साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं। यही पौराणिक मान्यता काशी में चिता भस्म की होली के आयोजन का आधार है। इस धार्मिक अनुष्ठान से पहले मणिकर्णिका घाट पर बाबा महामशानेश्वर महादेव के मंदिर में गुलशन कपूर और अन्य पदाधिकारियों की देखरेख में मध्याह्न आरती की गई, जिसके बाद घाट पर चिता भस्म की होली का सिलसिला शुरू हुआ।

मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है

यह दृश्य, काशी में जीवन और मृत्यु के साक्षात्कार को दर्शाता है, मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है, जहां हर व्यक्ति को शाश्वत अस्तित्व की ओर एक कदम और बढ़ाया जाता है। शिव आराधना समिति के डॉ मृदुल मिश्र ने बताया कि काशी में यह मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के गौने के अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर बाबा अपने गणों के साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं।

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