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जीवन की सारी बाधा और दुखों से छुटकारा पाने के लिए श्रद्धालुओं ने कुष्मांडा दरबार में हाजिरी लगाई

—चैत्र नवरात्र के चौथे दिन दरबार में गूंजा मां शेरा वाली का जयकारा

वाराणसी, 02 अप्रैल (हि.स.)। वासंतिक चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन बुधवार को बाबा विश्वनाथ की नगरी में आदिशक्ति की आराधना का माहौल रहा। श्रद्धालु पूरे उत्साह और आस्था के साथ मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के दर्शन पूजन के लिए जुटे रहे।

चौथे दिन परंपरागत रूप से श्रद्धालु दुर्गाकुंड स्थित कुष्मांडा दरबार में जाकर मां कुष्मांडा के स्वरूप का दर्शन और पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान भोर से ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी, जो देर शाम तक जारी रही। श्रद्धालु मां के दरबार में “सच्चे दरबार की जय” और “मां शेरा वाली के जयकारे” लगाते रहे।

चौथे दिन ही ज्ञानवापी परिसर में स्थित जगदम्बा के गौरी स्वरूप स्वयंभू विग्रह के दर्शन के लिए भी श्रद्धालु चौक क्षेत्र में एकत्रित हुए। यह मंदिर वर्ष में केवल एक दिन, यानी चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन ही श्रद्धालुओं के लिए खुलता है। विशेष रूप से इस अवसर पर शिवसेना के कार्यकर्ता भी माता रानी के दरबार में पहुंचकर जयकारे लगाते रहे। शिवसैनिक चौक चित्रा सिनेमा के पास इकट्ठे होकर माता रानी के दरबार की ओर श्रद्धाभाव से दर्शन पूजन के लिए निकले।

ज्ञानवापी परिक्षेत्र में स्थित मां श्रृंगार गौरी का मंदिर अति संवेदनशील क्षेत्र में है और यह मंदिर वर्ष में केवल एक दिन के लिए खुलता है। काशी में मान्यता है कि इस स्वयंभू विग्रह के दर्शन से महिलाओं का श्रृंगार पूरे वर्ष बना रहता है। सामान्य दिनों में श्रृंगार गौरी को लाल वस्त्र से ढका जाता है, लेकिन नवरात्रि के इस पावन अवसर पर उन्हें मुखौटे और लाल चुनरी से सजाया जाता है।

चौथे दिन दुर्गाकुंड स्थित कुष्मांडा दरबार में मां कुष्मांडा के स्वरूप का दर्शन और पूजा की जाती है। इस स्वरूप के दर्शन से सभी बाधाएं, विघ्न और दुख दूर हो जाते हैं। साथ ही भक्त भवसागर की दुर्गति से भी उबर जाते हैं। मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, जिनमें क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैं।

मान्यता के अनुसार जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधकार ही अंधकार फैला हुआ था, तब मां कुष्मांडा ने अपने ‘ईषत’ हस्त से सृष्टि की रचना की थी। इस प्राचीन देवी मंदिर का जिक्र ‘काशी खंड’ में भी मिलता है। यह मंदिर नागर शैली में निर्मित है और इसके गाढ़े लाल रंग के स्वरूप के कारण इसे आध्यात्मिक शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है।

गौरतलब है कि नागर शैली में निर्मित गाढ़े लाल रंग के इस आध्यात्मिक शक्तिपीठ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी श्रद्धाभाव से मत्था टेक चुके है।

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