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ढाका में बैशाख मंगल शोभायात्रा से पहले फूंका गया फासीवाद का मुखौटा, तनाव

ढाका, 12 अप्रैल (हि.स.)। यूनेस्को से अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्य ‘बैशाख मंगल शोभायात्रा’ निकलने से पहले फासीवाद का मुखौटा (प्रतीकात्मक चित्र) आगे के हवाले कर दिया गया। यह शोभायात्रा 14 अप्रैल को निकलनी थी। इससे ढाका विश्वविद्यालय में तनाव है। इसे ढाका विश्वविद्यालय के ललित कला संकाय (चारुकोला) ने बनाया था।

ढाका ट्रिब्यून अखबार की खबर के अनुसार, ढाका यूनिवर्सिटी के प्रॉक्टर एसोसिएट प्रोफेसर सैफुद्दीन अहमद ने कहा कि यह घटना आज सुबह हुई। हालांकि, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि आग कैसे लगी। प्रॉक्टर ने बताया कि फासीवाद के मुखौटे के साथ कबूतर की तस्वीर भी जलाई गई। उन्होंने कहा कि अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि आग किसने लगाई। सीसीटीवी फुटेज की जांच करने की कोशिश की जा रही है।

ललित कला संकाय के डीन प्रोफेसर अजहरुल इस्लाम ने कहा कि यह पता लगाने के लिए कुछ समय चाहिए कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। घटना की जांच के लिए समिति का गठन किया जाएगा। सीसीटीवी फुटेज प्राप्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि बैशाख मंगल शोभायात्रा को बांग्लादेश में मंगोल शोभायात्रा भी कहा जाता है। बांग्लादेश में बंगाली नव वर्ष (पहला बैशाख) के अवसर पर ढाका विश्वविद्यालय के ललित कला संकाय के शिक्षकों और छात्रों के तत्वावधान में पारंपरिक शोभायात्रा निकाली जाती है। यूनेस्को ने इस शोभायात्रा को 2016 में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी गई है। इसमें सभी धर्मों और जातियों के लोग बड़ी संख्या में हिस्सा लेते हैं। शोभायात्रा में पारंपरिक कला, नृत्य, संगीत और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन किया जाता है।

यूनेस्को की बेवसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, 14 अप्रैल को होने वाली मंगल शोभायात्रा की परंपरा 1989 में शुरू हुई थी। सैन्य शासन से निराश छात्र समुदाय बेहतर भविष्य की उम्मीद के इसका आयोजन किया था। ललित कला संकाय के सदस्य शोभायात्रा से एक महीने पहले मिलकर मुखौटे (बुरी शक्तियों को दूर भगाने और प्रगति की अनुमति देने के लिए) और झांकियां बनाते हैं।

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