हुगली। पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल में भाजपा संचालित पंचायत समिति कार्यालय के भीतर ही शिक्षा कर्माध्यक्ष की पिटाई का गंभीर आरोप सामने आया है। आरोप खानाकुल के भाजपा विधायक सुशांत घोष पर लगा है। इस घटना के बाद जिले की राजनीति में जबरदस्त हलचल मच गई है।
यह पहला मौका नहीं है जब विधायक सुशांत घोष विवादों में घिरे हों। कुछ दिन पहले ही उन पर बीडीओ कार्यालय में घुसकर धमकी देने का आरोप लग चुका है। अब सोमवार अपराह्न पंचायत समिति कार्यालय के अंदर शिक्षा कर्माध्यक्ष पर हाथ उठाने का मामला सामने आया है।
बैठक के दौरान हुआ विवाद
प्राप्त जानकारी के अनुसार, खानाकुल-2 पंचायत समिति कार्यालय में सोमवार को वित्त समिति की बैठक चल रही थी। बैठक के दौरान फेरीघाट की आय और वसूली को लेकर बहस शुरू हो गई। इसी दौरान स्थिति तनावपूर्ण हो गई।
आरोप है कि विधायक सुशांत घोष ने शिक्षा कर्माध्यक्ष रबीन पटेल पर अचानक हमला कर दिया। उन्हें थप्पड़ और घूंसे मारे गए। घायल रबीन पटेल को पहले खानाकुल ग्रामीण अस्पताल और बाद में आरामबाग मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया।
पीड़ित कर्माध्यक्ष का आरोप
शिक्षा कर्माध्यक्ष रबीन पटेल ने आरोप लगाते हुए कहा,
“पार्टी के मंडल अध्यक्ष के नाम पर एक फेरीघाट लिया गया है, जिसे असल में विधायक खुद चलाते हैं। पंचायत समिति की बैठक में मैंने फेरीघाट की आय का हिसाब मांगा। साढ़े 20 लाख रुपये के बदले सिर्फ एक लाख रुपये जमा किए गए हैं। इसी बात पर मुझे बेरहमी से पीटा गया।”
राजनीतिक बयानबाजी तेज
घटना के बाद तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा पर तीखा हमला बोला है। तृणमूल के राज्य सचिव स्वपन नंदी ने कहा कि
“भाजपा में पैसे के बंटवारे को लेकर अंदरूनी मारपीट हो रही है। गुटबाजी छिपाने की कोशिश नाकाम हो गई है।”
वहीं, आरामबाग संगठनात्मक जिला भाजपा अध्यक्ष सुशांत बेरा ने कहा कि उन्हें घटना की जानकारी मिली है और मामले की जांच की जा रही है।
विधायक ने आरोपों को बताया झूठा
आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा विधायक सुशांत घोष ने सभी आरोपों को खारिज किया है। उन्होंने कहा,
“ये सब झूठे आरोप हैं। शिक्षा कर्माध्यक्ष बैठक के दौरान खड़े होकर चिल्ला रहे थे और पैर फिसलने से गिर गए। मैंने किसी के साथ मारपीट नहीं की। मैं उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं।”
जांच और राजनीति दोनों तेज
घटना को लेकर प्रशासनिक स्तर पर क्या कार्रवाई होती है, इस पर सभी की नजरें टिकी हैं। वहीं, इस मामले ने एक बार फिर पंचायत स्तर पर राजनीतिक टकराव और प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।




