लखनऊ, 06 फरवरी (हि.स.)। सी.एस.आई.आर-सीमैप, लखनऊ में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का गुरुवार को समापन हुआ। सत्र की शुरुआत डॉ॰ अजीत कुमार शासनी, निदेशक, सी.एस.आई.आर-एन.बी.आर.आई, द्वारा की गई, जिन्होंने औंस पौधों में सेकेंडरी मेटाबोलाइट्स से आत्मरक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला। थाइलैंड के प्रोफेसर नथिसुवन ने अपने देश में हर्बल उत्पादों का पारिस्थितिकी तंत्र पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने हड़जोड़ और जिम्नेमा पौधों से स्वास्थ्य लाभों के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने सभी प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोएं।
डॉ. माया कैसरी, निदेशिका वैज्ञानिक, सी.वाई.आर.ओ.आई, फ्रांस ने एलो मैक्रा के उदाहरण से एक्सट्रेक्टोथेक की भूमिका पर अपनी प्रस्तुति दी। डॉ. कैसरी ने बायोडायवर्सिटी संरक्षण, कृषि विकास और बायोकैमिकल विश्लेषण के महत्व पर भी चर्चा की। डॉ. आर. सतीश कुमार, प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारथिअर विश्वविद्यालय, कोयंबटूर द्वारा साल्विया ऑफिसिनियालिस (गार्डन सेज) के मेटाबोलिक इंजीनियरिंग से उच्च मूल्य वाले डाइटरपिन्स, कार्नोसोल और कार्नोसिक एसिड के संवर्धन पर वार्ता की। सम्मेलन के समापन सत्र में पोस्टर प्रतियोगिता और फ़्लैश टॉक के विजेताओं को मेंटो और सर्टिफिकेट दे कर सम्मानित किया।
समापन समारोह में आई.ओ.आर.ए के निदेशक डॉ. मोहम्मद रजा संजाबी ने सी.एस.आई.आर-सीमैप का आभार व्यक्त किया और कहा कि इस सम्मेलन ने सभी शोधकर्ताओं को एकत्र करने का अद्वितीय अवसर प्रदान किया है और प्रोफेसर सुरकित नथिसुवन ने सीमैप के कार्यों की सराहना की। उन्होंने भारत को वैश्विक पहचान दिलाने में इसके योगदान की तारीफ की। उन्होंने कहा कि सीमैप का काम निस्वार्थ एवं प्रेरणादायक है।समारोह में डॉ॰ प्रबोध कुमार त्रिवेदी, निदेशक, सीएसआईआर – सीमैप ने सम्मेलन को शिक्षाप्रद और संवादात्मक बताया और कहा कि यह भविष्य के सहयोग और परियोजनाओं के लिए एक बेहतर पलटफ़ॉर्म प्रदान करेगा। उन्होंने यह भी बताया कि सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य क्षमता निर्माण और सहयोग बढ़ाना था और उन्होंने अन्य देशों से भी भागीदारी की उम्मीद जताई।