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जामनगर में जगुआर के दुर्घटनाग्रस्त होने की होगी कोर्ट ऑफ इंक्वायरी

नई दिल्ली, 03 अप्रैल (हि.स.)। गुजरात के जामनगर में बुधवार रात फाइटर जेट जगुआर के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारणों का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दिए गए हैं। भारतीय वायु सेना ने गुरुवार को इस दुर्घटना के लिए तकनीकी खराबी को शुरुआती कारण बताया है।

वायु सेना ने आधिकारिक जानकारी में बताया है कि जामनगर एयरफील्ड से उड़ान भर रहा दो सीटर जगुआर विमान बुधवार को रात में 10.20 बजे रात्रि मिशन के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। पायलटों को तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ा और उन्होंने विमान को आबादी क्षेत्र से बाहर निकालने की पहल की, ताकि एयरफील्ड और स्थानीय लोगों को कोई नुकसान न पहुंचे। इस दौरान दुर्भाग्य से एक पायलट की चोट के कारण मृत्यु हो गई, जबकि दूसरे का जामनगर के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है। वायु सेना को जानमाल के नुकसान पर गहरा दुख है और वह शोकाकुल परिवार के साथ मजबूती से खड़ा है। दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का आदेश दिया गया है।

दरअसल, भारतीय वायु सेना 2027-2028 से अपने जगुआर स्ट्राइक विमानों को चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना बना रही है, जिसे 2035-2040 तक पूरी तरह से समाप्त करने की योजना है। नियोजित अधिग्रहणों में देरी और तेजस मार्क-1ए कार्यक्रम में बार-बार समय सीमा में देरी के कारण लड़ाकू विमानों की निरंतर कमी को देखते हुए जगुआर को चरणबद्ध तरीके से हटाने से वायु सेना की परिचालन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। वायु सेना के लड़ाकू हवाई बेड़े का जगुआर विमान बहुत शक्तिशाली है। यह लंबी दूरी तक कम ऊंचाई पर उड़ान भरने की अपनी क्षमता के कारण अद्वितीय है। अवाक्स कवरेज से 200 फीट बाहर जगुआर अधिक ऊंचाई पर एफ-22 रैप्टर की तुलना में अधिक चुपके से उड़ान भर सकता है। भारतीय वायु सेना के उच्च ऊंचाई वाले युद्ध की ओर सैद्धांतिक बदलाव के बावजूद जगुआर सेवा में बना हुआ है, जो लंबी दूरी के सटीक-निर्देशित युद्ध पर निर्भर करता है।

जगुआर के प्रासंगिक बने रहने का एक कारण यह भी है कि भारतीय वायु सेना ने मध्यम ऊंचाई पर स्टैंड-ऑफ हमलों के लिए लड़ाकू विमान को अपनाया है। यूक्रेन में चल रहे संघर्ष ने जगुआर जैसे लड़ाकू विमानों की निरंतर प्रासंगिकता पर जोर दिया है। इस संघर्ष ने दिखाया है कि हमलावर विमान विवादित हवाई क्षेत्र में कम-स्तर की पैठ, मध्यम-ऊंचाई की पैठ से कहीं अधिक सुरक्षित हैं। जगुआर को 1980 के दशक के प्रारम्भ में भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया था। इसके बाद से ही भारतीय वायु सेना ने एचएएल और डीआरडीओ के साथ साझेदारी में जगुआर को लगातार उन्नत किया है, ताकि इसकी स्थिर आक्रमण क्षमता, मारक क्षमता और लक्ष्य प्राप्ति क्षमता में सुधार हो सके।

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