कानपुर शहर अपने ऐतिहासिक धरोहरों और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए जाना जाता है। नानाराव पार्क में स्थित बूढ़ा बरगद इस इतिहास की जीवित गवाही है। मई 1857 में ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार और तानाशाही के विरोध में कई जांबाज क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए।
अंग्रेजों की प्रतिक्रिया क्रूर थी। सुलगती क्रांति की आग कानपुर तक पहुंची, और 4 जून 1857 को नानाराव पार्क में 133 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर फांसी दी गई। यह कार्रवाई अंग्रेजों की बर्बरता का प्रतीक बनी। स्थानीय इतिहासकार डॉ. रजत कुमार बताते हैं कि इस घटना के पीछे एक अंग्रेज अधिकारी की गलफहमी और फायरिंग ने कई घटनाओं को जन्म दिया।
नानाराव पार्क में एक “बीबीघर” भी था, जिसमें अंग्रेज अधिकारी ठहरते थे और भारतीयों का प्रवेश निषेध था। इसके बावजूद क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा और बीबीघर में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की।
आज बूढ़ा बरगद असली नहीं बचा है, लेकिन यहां शहीद स्थल की शिलापट लगी है। यह शिलापट 133 क्रांतिकारियों की शहादत और देशभक्ति की गवाही देती है। कानपुर का यह ऐतिहासिक स्थल स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय जनता के संघर्ष को याद रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
कानपुर बूढ़ा बरगद इतिहास न केवल अंग्रेजों की क्रूरता का प्रतीक है, बल्कि उन वीरों की याद भी दिलाता है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर की।