📍 नगांव (असम), 13 जून (हि.स.) — असम के ऐतिहासिक सत्रों (मठ) की भूमि पर हो रहे अतिक्रमण का बड़ा मामला मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा की सोशल मीडिया पोस्ट के बाद सुर्खियों में आ गया है। यह खुलासा सत्र भूमि समस्या की जांच कर रहे आयोग द्वारा 9 जून को मुख्यमंत्री को सौंपी गई विस्तृत रिपोर्ट के आधार पर हुआ।
मुख्यमंत्री द्वारा शुक्रवार को सोशल मीडिया पर जानकारी साझा किए जाने के बाद कोबाइकटा सत्र सहित कई ऐतिहासिक स्थलों पर अतिक्रमण की पुष्टि हुई है। कोबाइकटा सत्र, जो महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव की स्मृति से जुड़ा है, उसकी 46 बीघा भूमि पर अतिक्रमणकारियों ने कब्जा कर लिया है।
🔸 क्या है कोबाइकटा सत्र का इतिहास?
कोबाइकटा सत्र, बटद्रवा थाना क्षेत्र के दक्षिण में स्थित है और 1983 तक यह सत्र भक्ति-वैष्णव अनुयायियों के लिए एक प्रमुख धार्मिक केंद्र था। उस समय यहां 200 से अधिक परिवार रहते थे। परंतु समय के साथ सत्र उपेक्षा का शिकार हो गया और वर्तमान में यह केवल दो कट्ठा भूमि तक सीमित रह गया है।
🔸 सत्राधिकार की प्रतिक्रिया
सत्राधिकार अम्लान ज्योति देव गोस्वामी ने कहा:
“मुख्यमंत्री द्वारा दी गई जानकारी भयावह है। सत्र की संस्कृति को बचाने के लिए इन अतिक्रमित ज़मीनों को अविलंब मुक्त कराया जाना चाहिए। सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे।”
🔸 अन्य सत्रों की स्थिति भी चिंताजनक
- रामपुर सत्र: जहाँ शंकरदेव ने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी, वहां भी अतिक्रमण गंभीर रूप ले चुका है।
- पहले: 600 बीघा भूमि
- अब: 297 बीघा (अधिकांश पर अतिक्रमण)
- बालिसत्र, डुमडुमिया, रजाबाड़ी, पानबाड़ी, आदि:
- इन क्षेत्रों की 500–500 बीघा ग्रेज़िंग रिज़र्व और बाज़ार की जमीनें भी अतिक्रमित हैं।
- कई जगहों पर पक्के भवन बन चुके हैं, जिससे प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठता है।
🔸 निष्कर्ष:
सत्रों की भूमि पर अतिक्रमण केवल आस्था का हनन नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत की क्षति भी है। मुख्यमंत्री की पोस्ट ने इस मुद्दे को फिर से राष्ट्रीय स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है। अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार और प्रशासन इस दिशा में कितनी तेजी और पारदर्शिता से कदम उठाते हैं।
🛑 आवश्यक है:
- भूमि की पहचान, सीमांकन और डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करना
- अवैध कब्जेदारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई
- सत्रों की पुनर्स्थापना और संरक्षण हेतु विशेष फंड की व्यवस्था