नैनीताल, 18 फ़रवरी (हि.स.)। कुमाऊं विश्वविद्यालय में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जैव फ्लॉक विधि का प्रयोग करते हुए उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। विश्वविद्यालय ने इस तकनीक से 30 किलोग्राम की मछली का सफल उत्पादन करने के साथ ही इसका विक्रय भी सफलतापूर्वक किया है, जो इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है।
जल की गुणवत्ता बनाए रखते हुए उच्च उत्पादन
प्राप्त जानकारी के अनुसार जैव फ्लॉक विधि सीमित स्थान में अधिक मछली उत्पादन की क्षमता प्रदान करती है और साथ ही जल की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक होती है। इस पद्धति के माध्यम से विश्वविद्यालय में मत्स्य पालन को व्यावसायिक दृष्टि से भी लाभप्रद बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं और इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।। विश्वविद्यालय प्रशासन इस सफलता से प्रेरित होकर भविष्य में उत्पादन और विक्रय को और अधिक बढ़ाने की योजना बना रहा है।
जैव फ्लॉक तकनीक क्या है?
यह एक उन्नत जल कृषि तकनीक है, जिसमें माइक्रोबियल फ्लॉक्स के माध्यम से पानी की गुणवत्ता को नियंत्रित किया जाता है और पोषक तत्वों का पुनः उपयोग किया जाता है। इससे पारंपरिक मत्स्य पालन की तुलना में कम जल की आवश्यकता होती है और अधिक उत्पादन संभव हो पाता है।
विश्वविद्यालय का लक्ष्य और भविष्य की योजना
कुलपति प्रो. दीवान रावत ने बताया कि इस केंद्र की स्थापना तीन प्रमुख उद्देश्यों को ध्यान में रखकर की गई थी। पहला, विद्यार्थियों को जैव फ्लॉक तकनीक के माध्यम से सतत मत्स्य पालन का प्रशिक्षण देना। दूसरा, नैनीताल की विलुप्त हो चुकी स्थानीय मछली ‘स्नो ट्राउट’ को पुनर्जीवित करना। तीसरा, उन सभी लोगों को प्रशिक्षित करना, जो आत्मनिर्भरता के लिए इस तकनीक का उपयोग करना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में जैव फ्लॉक विधि से उत्पादित मछली की गुणवत्ता उच्च स्तर की पाई गई है और इसे बाजार में अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। विश्वविद्यालय भविष्य में इस तकनीक को और अधिक विकसित करने तथा अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए कार्य कर रहा है।
विद्यार्थियों को मिलेगा प्रशिक्षण
इस योजना के अंतर्गत मत्स्य पालन में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों को व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को जल गुणवत्ता नियंत्रण, पोषक तत्व प्रबंधन और मछली उत्पादन की आधुनिक तकनीकों से अवगत कराया जाएगा।
कृषकों के लिए नई संभावनाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि जैव फ्लॉक विधि किसानों और उद्यमियों के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक साबित हो सकती है। पारंपरिक मत्स्य पालन की तुलना में यह पद्धति अधिक उत्पादन और कम लागत में मछली पालन की संभावनाओं को बढ़ाती है। विश्वविद्यालय इस तकनीक को किसानों तक पहुंचाने के लिए कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है।