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मौलि संवाद: नेशनल स्पोर्ट्स कॉनक्लेव में भवानी देवी और मीर रंजन नेगी ने साझा किए अपने प्रेरणादायक अनुभव

देहरादून, 11 फ़रवरी (हि.स.)। 38वें राष्ट्रीय खेलों के अंतर्गत चल रहे “मौलि संवाद: नेशनल स्पोर्ट्स कॉनक्लेव” के 13वें दिन खेल जगत की जानी-मानी हस्तियों ने अपने अनुभव साझा किए। इस खास मौके पर दो महत्वपूर्ण सत्र आयोजित किए गए, जिनमें पहली भारतीय ओलंपिक फेंसर भवानी देवी और पूर्व भारतीय हॉकी खिलाड़ी व कोच मीर रंजन नेगी ने अपनी प्रेरणादायक कहानियाँ सुनाईं।

पहला सत्र: “अनस्टॉपेबल: भवानी देवी की यात्रा महानता और गौरव की ओर”

पहले सत्र में भवानी देवी ने अपने खेल सफर की शुरुआत से लेकर ओलंपिक्स तक के सफर को साझा किया। उन्होंने बताया कि छठी कक्षा में फेंसिंग को चुनना उनके जीवन का अहम मोड़ था। अभ्यास के कठिन नियमों का पालन करते हुए उन्होंने सुबह 5 से 8 बजे और शाम 5 से 7 बजे तक कड़ी मेहनत की, जिसे उन्होंने पाँच साल तक जारी रखा।

भवानी ने अपने पहले अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट (2007) का अनुभव साझा किया, जब देर से पहुंचने के कारण उन्हें ब्लैक कार्ड मिला और प्रतियोगिता से बाहर कर दिया गया। मात्र 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने अनुशासन और समय की अहमियत को समझा। इसी घटना के बाद उन्होंने खुद से वादा किया कि वह राज्य स्तर पर पदक जीतेंगी, और फिर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता प्राप्त की।

उन्होंने बताया कि कोविड के दौरान ओलंपिक्स के लिए क्वालीफाई करने के बाद उन्हें घर पर ही अभ्यास करना पड़ा। उस समय कई लोगों ने कहा कि प्रतियोगिता रद्द हो जाएगी, लेकिन उनकी माँ सबसे बड़ी प्रेरणा बनीं। भवानी ने कहा, “मैं अपनी यात्रा का आनंद ले रही हूँ और अगले ओलंपिक्स, लॉस एंजेलेस 2028 की तैयारी के लिए चार साल हैं, लेकिन फिलहाल मैं अपनी प्रक्रिया से संतुष्ट हूँ।”

दूसरा सत्र: “ड्रिब्लिंग एडवर्सिटीज़ एनरूट टू ग्लोरी”

दूसरे सत्र में पूर्व भारतीय हॉकी गोलकीपर मीर रंजन नेगी ने अपने जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों की कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि 1982 के एशियाई खेलों में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की हार उनके जीवन का सबसे कठिन दौर बन गई। इस हार के बाद उन्हें देशद्रोही तक कहा गया, घर पर पथराव हुआ और समाज ने बहिष्कार किया।

लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने कठोर परिश्रम व समर्पण से वापसी की। बाद में वह भारतीय पुरुष हॉकी टीम के कोच बने और फिर महिला हॉकी टीम को प्रशिक्षित किया, जिसने स्वर्ण पदक जीता। उनकी प्रेरणादायक यात्रा पर बॉलीवुड फिल्म “चक दे इंडिया” बनी, जिसमें हॉकी के दृश्य उन्हीं की देखरेख में फिल्माए गए थे।

जब “चक दे इंडिया” रिलीज़ हुई, तो उनकी कहानी को फिर से सराहा गया। इस दौरान अपने दिवंगत बेटे को याद करते हुए उन्होंने कहा:

“साथ छूट जाने से रिश्ते नहीं टूटा करते,

वक्त की धुंध में लम्हें टूटा नहीं करते।

कौन कहता है तेरा सपना टूट गया,

नींद टूटी है, सपना कभी नहीं टूटा करता।”

मीर रंजन नेगी ने “अभि फाउंडेशन” की स्थापना की, जहाँ वह युवा खिलाड़ियों को अपने बच्चों की तरह प्रशिक्षित कर रहे हैं।

खेल प्रेमियों के लिए प्रेरणा बनीं ये कहानियाँ

भवानी देवी और मीर रंजन नेगी की कहानियाँ न केवल खेल प्रेमियों के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहता है। मौलि संवाद: नेशनल स्पोर्ट्स कॉनक्लेव का यह आयोजन खेल और संघर्ष की कहानियों को सामने लाने का एक महत्वपूर्ण मंच साबित हुआ।

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