पटना में भारतीय कला दृष्टि संगोष्ठी
पटना में संस्कार भारती और सीमेज संस्था के संयुक्त आयोजन में भारतीय कला दृष्टि 2025 पर संगोष्ठी आयोजित हुई। इसमें साहित्य, रंगमंच, संगीत और फिल्म से जुड़े विशेषज्ञों ने छात्रों को भारतीय कला की आत्मा और उसके समकालीन महत्व पर मार्गदर्शन दिया।
सोशल मीडिया और कला
संस्कार भारती के संगठन मंत्री अभिजीत गोखले ने कहा कि सोशल मीडिया ने भारत की विविधताओं को दुनिया के सामने रखा है। हालांकि, उन्होंने चेताया कि भ्रामक और विकृत सामग्री संस्कृति को नुकसान पहुंचा सकती है।
फिल्मों का दृष्टिकोण
फिल्म समीक्षक बिनोद अनुपम ने बताया कि कुछ फिल्में आदर्श परिवार की छवि दिखाती हैं, जबकि कई फिल्मों में हिंसा का अतिरेक है। उन्होंने पारिवारिक मूल्यों वाली फिल्मों की अहमियत को रेखांकित किया।
साहित्य और राष्ट्रभाव
संगीत नाटक अकादमी सदस्य डॉ. संजय कुमार चौधरी ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों में भारतीय दृष्टि साफ झलकती है। उन्होंने जोर दिया कि फिल्मों में राष्ट्रभाव और सकारात्मक पात्रों को बढ़ावा मिलना चाहिए।
लोक जीवन और परंपरा
वरिष्ठ नृत्यांगना अंजुला कुमारी ने कहा कि भारतीय कला दृष्टि लोकजीवन से जुड़ी है। उन्होंने वसुधैव कुटुम्बकम् और लोकगीतों की परंपरा का महत्व समझाया। साथ ही डीजे संस्कृति पर चिंता जताई, जो लोकसंस्कृति को पीछे धकेल रही है।
साहित्य और सम्मान
वरिष्ठ नाटककार मिथिलेश कुमार ने कहा कि भले ही साहित्य और कला से जीविका कठिन है, लेकिन इससे समाज में सम्मान और पहचान अवश्य मिलती है।
निष्कर्ष
भारतीय कला दृष्टि 2025 संगोष्ठी ने यह संदेश दिया कि कला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन, परिवार और राष्ट्र की सामूहिक चेतना का आधार है।