बांकुड़ा, 5 दिसंबर। राज्य के सरकारी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोक कलाकारों के चयन को लेकर असंतोष लगातार बढ़ रहा है। कलाकारों का आरोप है कि अब चयन मेरिट या अनुभव के आधार पर नहीं, बल्कि दलगत समूहों और राजनीतिक दबाव के आधार पर किया जा रहा है।
महकमा कार्यालय में लंबी कतार, कलाकारों में नाराज़गी
गुरुवार को विष्णुपुर के महकमा तथ्य-संस्कृति कार्यालय के बाहर देर शाम तक लंबी कतारें लगती रहीं। लोक प्रसार प्रकल्प के शिल्पकारों ने बताया कि व्यक्तिगत आवेदन देने के बावजूद उनके नाम सूची में नहीं जोड़े जा रहे, जबकि नए और कम अनुभवी कलाकारों को विशेष समूहों के दबाव में प्राथमिकता मिल रही है।
लोक प्रसार प्रकल्प के तहत कलाकारों को प्रति माह 1000 रुपये का मानदेय मिलता है, जिसके लिए उन्हें हर वर्ष ‘लाइफ सर्टिफिकेट’ जमा करना होता है। कलाकारों के अनुसार, यही प्रक्रिया अब राजनीतिक पकड़ वाले समूहों के लिए ‘नियंत्रण का साधन’ बन गई है।
“समूह में शामिल हुए बिना नंबर नहीं आता” – कलाकार
बिष्णुपुर, जयपुर, इंदस, सोनामुखी और अन्य इलाके के कलाकारों ने बताया कि पहले वे सीधे आवेदन करते थे और उन्हें कार्यक्रमों में भागीदारी मिल जाती थी। लेकिन अब बिना किसी दलगत समूह से जुड़े उनका नाम आगे नहीं बढ़ता।
एक वरिष्ठ लोक कलाकार ने कहा—
“हम सालों से लोक संस्कृति की सेवा कर रहे हैं, लेकिन अब समूह विशेष की अनुमति के बिना सूची में नाम भी नहीं आता।”
पारदर्शिता की मांग, चेतावनी भी दी
कलाकारों ने राज्य सरकार और सूचना-संस्कृति विभाग से स्पष्ट एवं निष्पक्ष चयन प्रक्रिया लागू करने की मांग की है। उनका कहना है कि अनुभवी और वास्तविक लोक कलाकारों को दरकिनार करना लोक संस्कृति के साथ अन्याय है।
कई कलाकारों ने चेतावनी दी है—
“अगर यही स्थिति रही, तो हम आंदोलन के लिए तैयार हैं।”
सरकारी कार्यक्रमों में दलगत हस्तक्षेप का यह मुद्दा अब तेजी से राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।




