राम मंदिर से सीता मंदिर तक: बिहार में नई आस्था लहर तोड़ेगी जातीय दीवारें
पटना/सीतामढ़ी, 06 नवंबर (हि.स.)। अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन जहां उत्तर प्रदेश की राजनीति में परिवर्तन की लहर लेकर आया, वहीं अब बिहार में सीता मंदिर के शिलान्यास से वही आस्था बिहार की सियासत में नई दिशा दे रही है।
हिंदुत्व का नया विस्तार
सीतामढ़ी की धरती को ‘माता सीता की जन्मस्थली’ मानते हुए भाजपा और जेडीयू इसे आस्था, नारी सम्मान और राष्ट्रभक्ति के संगम के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था, “राम बिना सीता अधूरे हैं और भारत बिना बिहार अधूरा।” राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में यह ‘राम से सीता तक’ हिंदुत्व का विस्तार है, जो पारंपरिक जातीय समीकरणों को चुनौती दे सकता है।
नीतीश कुमार की विकास संतुलन नीति
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिलान्यास कार्यक्रम में कहा कि सीता मंदिर सिर्फ धर्म का नहीं, बल्कि विकास का प्रतीक बनेगा। जानकार इसे नीतीश की ‘राजनीतिक संतुलन’ की रणनीति बताते हैं—जहां वे आस्था और संविधान, दोनों के बीच सेतु बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
विपक्ष का पलटवार और जनता की भावनाएं
राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे चुनावी हथकंडा बताते हुए कहा कि “जब बेरोजगारी और महंगाई पर जवाब नहीं होता, तब मंदिर याद आता है।” लेकिन जमीनी स्तर पर अयोध्या-सीतामढ़ी आस्था यात्रा से जनभावना भाजपा-नीतीश गठबंधन के पक्ष में जाती दिख रही है।
संस्कृति बनाम समीकरण का चुनाव
2025 का बिहार चुनाव अब केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि संस्कृति बनाम समीकरण का संघर्ष बन गया है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, जिस तरह राम मंदिर ने उत्तर प्रदेश में जातीय दीवारें तोड़ीं, उसी तरह सीता मंदिर बिहार की राजनीति में नया अध्याय लिख सकता है।




