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आरजी कर बलात्कार और हत्या मामला : क्यों नहीं दी गई फांसी की सजा, 172 पन्नों के आदेश में जज ने विस्तार से बताया

कोलकाता, 21 जनवरी (हि. स.)। पश्चिम बंगाल के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज की एक महिला चिकित्सक के साथ हुए बलात्कार और हत्या मामले में दोषी करार दिए गए संजय राय को सियालदह अदालत के न्यायाधीश अनिर्बाण दास ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। सजा सुनाते समय न्यायाधीश ने कहा कि यह अपराध ‘रेयर ऑफ द रेयरेस्ट’ (विरले में भी विरलतम) नहीं है, और इसी आधार पर फांसी की सजा देने से इनकार कर दिया।

न्यायाधीश अनिर्बाण दास ने इस मामले पर 172 पृष्ठों का विस्तृत फैसला जारी किया है, जिसमें उन्होंने फांसी की सजा न देने के कारणों की विस्तार से व्याख्या की। सोमवार को दोषी संजय को जेल भेजने से पहले शाम में अदालत की वेबसाइट पर यह फैसला अपलोड किया गया।

न्यायाधीश दास ने अपने फैसले में कहा कि उम्रकैद सामान्य सजा है, जबकि फांसी एक अपवाद। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में अपराध बेहद घिनौना और नृशंस था, लेकिन इसे ‘विरलतम अपराध’ की श्रेणी में रखना उचित नहीं होगा।

उन्होंने स्पष्ट किया कि फांसी की सजा केवल उन्हीं मामलों में दी जाती है, जहां सुधार की कोई संभावना नहीं हो। उन्होंने भारतीय सुप्रीम कोर्ट के 1980 के ऐतिहासिक ‘बच्चन सिंह बनाम पंजाब सरकार’ मामले का हवाला देते हुए बताया कि मृत्यु दंड के लिए बहुत सख्त मानदंड निर्धारित किए गए हैं। आरजी कर मामले में उन मानदंडों का पालन नहीं हुआ।

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न्यायाधीश की दृष्टि से अपराध की प्रकृति

न्यायाधीश दास ने कहा कि इस अपराध में पीड़िता को संजय की यौन पिपासा के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। उन्होंने गला घोंटने और यौन शोषण को ‘संगठित अपराध’ करार दिया। इसके बावजूद, उन्होंने इसे ऐसा अपराध नहीं माना जो समाज को इतनी गहराई से झकझोर दे कि फांसी जरूरी हो।

उन्होंने यह भी कहा कि अदालत को फैसले में भावनाओं और सामाजिक दबाव से परे रहकर निष्पक्ष रूप से काम करना चाहिए। जज ने कहा है, “न्याय प्रतिशोध नहीं है। हमें ‘आंख के बदले आंख’ की मानसिकता से बाहर आना चाहिए।”

सजा के आदेश में न्यायाधीश ने कहा है कि किसी भी अपराध को ‘विरलतम अपराध’ मानने के लिए ठोस और निर्विवाद साक्ष्य आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि आर.जी. कर मामले में सुधार की संभावना अभी बाकी है।

मामले की जांच कर रही सीबीआई ने अदालत में संजय के अपराध को ‘विरलतम’ बताते हुए फांसी की सजा की मांग की थी। हालांकि, न्यायाधीश ने सीबीआई की इस दलील को खारिज कर दिया और संजय को भारतीय दंड संहिता की धारा 64, 66 और 103(1) के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

संजय को जेल में आजीवन कारावास के साथ एक लाख का जुर्माना भी भरने का आदेश दिया गया।

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