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धमतरी जिले के कई किसान चनाबूट बेचकर कमा रहे प्रति एकड़ 36 हजार रुपये

धमतरी, 27 फ़रवरी (हि.स.)।रबी सीजन में जल संरक्षण के लिए चना फसल किसानों के लिए कारगर है। कम पानी में अधिक उत्पादन होता है। मजदूर व किसानों को साथ-साथ रोजगार मिलता है। वहीं सब्जियों के लिए भी फायदेमंद है, ऐसे में जिले के किसानों ने पहली बार फसल चक्र परिवर्तन को लेकर बड़ी मात्रा में चना फसल लगाए है। किसानों का कहना है कि वे प्रति एकड़ चनाबूट बेचकर 36 से 38 हजार रुपये तक कमा लेते हैं, जो संतोषप्रद कमाई है।

मगरलोड विकासखंड के कुंडेल निवासी किसान रामनाथ ने बताया कि वे दो-सवा दो महीने में ही करीब चना बूट बेचकर 84 हजार रुपये की कमाई की है। इसमें खेती की लागत निकाल दें, तो प्रति एकड़ 36-38 रुपये की कमाई व मुनाफा है। जिले में इस बार करीब साढ़े पंद्रह हजार हेक्टेयर में किसानों ने चने की फसल ली है। चार से पांच हजार हेक्टेयर की फसल को किसानों ने चनाबूट के रूप में 40 रुपये किलो के दाम पर बेचा है और अच्छा मुनाफा भी कमाया है। धमतरी विकासखंड के खरतुली निवासी चैतुराम ने तीन एकड़ में चने की फसल लगाई और चनाबूट के रूप में 38 रुपये प्रति किलो की दर से बेचकर एक लाख 16 हजार रुपये का लाभ कमाया है। रामनाथ बताते हैं कि उनके पास दो एकड़ खेत है, जिसमें खरीफ के दौरान धान की फसल लगाई थी। इसके बाद कृषि विभाग और जिला प्रशासन की समझाईश और मदद से उन्होंने डेढ़ एकड़ रकबे में रबी मौसम में धान के बदले चना की खेती की। रामनाथ ने बताया कि 70-80 दिन में ही चने में फल आ गया और उसे जड़ से उखाड़ कर चनाबूट के रूप में हाइवे के किनारे दुकान के साथ मंडी और लोकल बाज़ार में 35-40 रुपये किलो के भाव से बेच दिया। डेढ़ एकड़ रकबे में दो हजार 100 किलो चनाबूट हुआ जिसको 40 रुपए किलो के भाव से बेचने पर 84 हजार रुपए मिले। रामनाथ ने बताया कि इस राशि से फसल की काश्त लागत लगभग तीस हजार रुपए घटा देने पर उन्हें शुद्ध रूप में 54 हजार रुपये का मुनाफा हुआ है।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी के धान की फसल के लिए प्रति हेक्टे्यर एक करोड़ 20 लाख लीटर पानी की जरूरत होती है, वहीं चना की फसल के लिए केवल 40 लाख लीटर पानी लगता है। ऐसे में चना की खेती से प्रति हेक्टेयर 80 लाख लीटर पानी की बचत हो जाती है। कृषि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि धान के बदले चने की खेती से सिंचाई के पानी, खाद, निंदाई-गुड़ाई, कटाई, रोग-व्याधि और दवाई आदि पर होने वाले खर्चो पर भी 40-45 हज़ार रुपये बच जाते हैं जिसका सीधा फायदा किसानों को ही होता है। इसके अलावा चने की जड़ों में मिलने वाले राइजोबियम बैक्टीरिया वायुमंडल की नाइट्रोजन गैस की फिक्स करके सीधे पौधे और जमींन को देते है, जिससे खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। जमीन की सेहत सुधरती है और आगे की फसलों के लिए रासायनिक खादों की खपत कम होती है।

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