400 साल पुरानी परंपरा: ताजपुर रथयात्रा में मुस्लिम परिवार की अहम भूमिका
पश्चिम बंगाल के ताजपुर गांव की यह रथयात्रा आज सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बन चुकी है।
🛕 रथ पर विराजमान हैं कुलदेवता श्रीधर
- यह रथ ‘रायबाड़ी रथ’ के नाम से प्रसिद्ध है।
- भगवान जगन्नाथ के स्थान पर शालग्राम शिला के रूप में श्रीधर देवता विराजमान होते हैं।
- हर साल पालकी से मूर्ति को रथ पर लाया जाता है।
🤝 मुस्लिम परिवार करता है रथ यात्रा की शुरुआत
- काजी परिवार हर साल रथ की रस्सी खींचकर यात्रा की शुरुआत करता है।
- यह परंपरा 1946 के दंगों के बाद शुरू हुई थी।
- उस समय खालेक काजी ने खुद आगे आकर यात्रा को बचाया था।
🎉 क्यों खास है यह परंपरा?
- साकू काजी कहते हैं, “ये धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक उत्सव है।”
- रथयात्रा के दिन बड़ा मेला भी लगता है।
- सभी समुदायों के लोग इसमें भाग लेते हैं।
🔍 क्या है रथयात्रा का महत्व?
- जगन्नाथ रथयात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के यात्रा दिवस के रूप में मनाई जाती है।
- हर 12 साल में नवकलेवर होता है, जब भगवान की नई मूर्तियां बनती हैं।
- 2025 में जगन्नाथ रथयात्रा की तिथि: 6 जुलाई, रविवार को होगी।
- इसे देखने लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं।
✨ निष्कर्ष
ताजपुर की रथयात्रा केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारत की संविधानिक एकता और सांस्कृतिक मेल का प्रतीक है।
🎊 “जहां परंपरा हो सौहार्द्र से भरी, वहीं बनती है सच्ची भारत कथा।”