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दिव्यांग शिक्षण संस्थानों में संवेदनशील प्रशासनिक व्यवस्था सुनिश्चित करें: मुख्यमंत्री योगी

मुख्यमंत्री ने कहा, देशभर के दिव्यांग युवाओं के लिए शिक्षा का केंद्र बने उत्तर प्रदेश

लखनऊ, 21 मई (हि.स.)। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिव्यांग युवाओं के लिए संचालित शैक्षिक संस्थानों में प्रशासनिक तंत्र को संवेदनशील, सजग और सतर्क रहने की आवश्यकता पर बल दिया है।

दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग की बुधवार को समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ अराजक तत्वों द्वारा सुनियोजित ढंग से दिव्यांगजनों के विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में भ्रम फैलाकर उन्हें अवांछित और समाजविरोधी गतिविधियों की ओर प्रवृत्त करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। ऐसी प्रवृत्तियों के प्रति हमें पूर्णतः सतर्क रहते हुए विद्यार्थियों की सुरक्षा और मानसिक-सामाजिक संरक्षण सुनिश्चित करना होगा। उन्होंने निर्देश दिए कि इन संस्थानों में सहायता के नाम पर प्रस्ताव देने वाली बाहरी संस्थाओं की पृष्ठभूमि की गहन जांच-पड़ताल के उपरांत ही उनकी अनुमति दी जाए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के सभी बचपन डे केयर सेंटरों, मानसिक मंदित आश्रय केंद्रों, समेकित विद्यालयों तथा ‘ममता’, ‘स्पर्श’ और ‘संकेत’ विद्यालयों का व्यापक निरीक्षण किया जाए। यहां अध्ययनरत बच्चों से संवाद स्थापित कर उनकी आवश्यकताओं, आकांक्षाओं और अभिभावकों की अपेक्षाओं को समझते हुए संस्थागत व्यवस्थाएं और अधिक सुदृढ़ की जाएं। इन विद्यालयों में शिक्षकों के रिक्त पदों को शीघ्र भरा जाए और जब तक नियमित नियुक्ति न हो, तब तक अन्य वैकल्पिक व्यवस्था से योग्य युवाओं की सेवाएं ली जाएं। इन युवाओं को भविष्य की चयन प्रक्रियाओं में वेटेज प्रदान किया जाना चाहिए।

बैठक में दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की योजनाओं, उपलब्धियों तथा कार्ययोजनाओं की अद्यतन स्थिति से मुख्यमंत्री को अवगत कराया गया। उन्होंने निर्देशित किया कि समस्त कल्याणकारी योजनाएं पारदर्शी और तकनीकी रूप से सुसज्जित हों तथा लक्षित लाभार्थियों को समयबद्ध रूप से लाभ प्रदान करें।

मुख्यमंत्री ने बताया कि बीते आठ वर्षों में विभाग के बजट में 10 गुना से अधिक वृद्धि की गई है, जो दिव्यांगजनों के प्रति सरकार की संवेदनशील प्रतिबद्धता को दर्शाती है। अधिकारियों की ओर अवगत कराया गया कि दिव्यांगजन पेंशन योजना के अंतर्गत वर्तमान में 11.04 लाख लाभार्थियों को 1300 करोड़ रुपये की पेंशन राशि वितरित की गई है, जबकि कुष्ठरोग पीड़ित लगभग 12 हजार व्यक्तियों को 3000 रुपये प्रतिमाह की दर से सहायता दी जा रही है। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि राज्यस्तरीय अभियान चलाकर यह पता लगाया जाए कि किन पात्र व्यक्तियों को अभी तक पेंशन नहीं मिल रही है, साथ ही जो अपात्र लाभ ले रहे हैं उन्हें भी चिह्नित कर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।

बैठक में यह भी अवगत कराया गया कि बीते वित्तीय वर्ष में 35,136 दिव्यांगजनों को ट्राइसाइकिल, व्हीलचेयर, ब्रेल किट्स जैसे सहायक उपकरणों के लिए 28.93 करोड़ रुपयेकी सहायता दी गई है। मोटराइज्ड ट्राइसाइकिल योजना के अंतर्गत 270 अत्यंत दिव्यांगजन को दाे लाख रुपये तक की मशीनें उपलब्ध कराई गईं। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं का लाभ प्रदेश के लाभार्थियों तक पूरी तत्परता से पहुंचे, यह सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने कहा कि मोटराइज्ड ट्राइसाइकिल योजना में सांसदों और विधायकों से भी अपनी निधि से सहयोग देने का आग्रह किया जाए।

दिव्यांगजनों को राज्य परिवहन निगम की बसों में निःशुल्क यात्रा सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। बैठक में जानकारी दी गई कि बीते वित्तीय वर्ष में 31 लाख से अधिक दिव्यांगजनों ने इस सुविधा का लाभ उठाया।

शैक्षिक क्षेत्र की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री को अवगत कराया गया कि 25 जिलाें में स्थापित ‘चाइल्ड डे केयर सेंटरों’ में दृष्टि, श्रवण एवं मानसिक रूप से दिव्यांग 1390 बच्चों को आवश्यक प्रशिक्षण एवं शिक्षा दी जा रही है। वर्तमान में राज्य में संचालित 16 विशेष विद्यालय, सात समेकित विद्यालय एवं पांच मानसिक पुनर्वास केंद्रों के माध्यम से 1680 बच्चों को आवासीय शिक्षा प्रदान की जा रही है।

मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि लखनऊ स्थित ‘डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय’ तथा चित्रकूट स्थित ‘जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय’ में कौशल विकास आधारित पाठ्यक्रमों को प्राथमिकता दी जाए और इन संस्थानों का प्रचार-प्रसार राष्ट्रीय स्तर पर किया जाए ताकि देशभर के इच्छुक दिव्यांगजन इन संस्थानों से जुड़ सकें।

बैठक में यह भी जानकारी दी गई कि अब तक प्रदेश में 15 लाख दिव्यांगजन यूडीआईडी पोर्टल पर पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें अधिकांश को यूनिक आईडी कार्ड निर्गत किए जा चुके हैं। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि प्रदेश के सभी 18 मंडल मुख्यालयों पर ‘दिव्यांग पुनर्वास केंद्रों’ की स्थापना प्राथमिकता के आधार पर की जाए ताकि पुनर्वास, शिक्षा और कौशल विकास से संबंधित सेवाएं स्थानीय स्तर पर ही सुलभ हो सकें।

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