Wed, Apr 9, 2025
35 C
Gurgaon

जिस अमेरिका में अल्‍पसंख्‍यकों पर हो रहा अत्‍याचार वह भारत पर उठा रहा प्रश्‍न ?

संयुक्त राज्य आयोग अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता यानी अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता जताते हुए भारत पर यह आरोप लगाया है कि यहां रह रहे अल्पसंख्यक समुदायों, विशेषकर मुस्लिम और ईसाई समुदायों के साथ भेदभाव और बुरा व्यवहार हो रहा है। उन पर अत्‍याचार हो रहे हैं। अब इस रिपोर्ट के आने के बाद यह पूरी तरह से स्‍पष्‍ट हो चुका है कि भले ही अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हो गया हो और जो बाइडेन के स्‍थान पर डोनाल्‍ड ट्रंप वहां राष्‍ट्रपति बन गए हैं, किंतु अमेरिका प्रशासन के भारत को लेकर नकारात्‍मक नजरिए में कोई बदला नहीं आया है।

क्‍या यह पहली बार है जब वाशिंगटन डीसी स्थित यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम (यूएससीआईआरएफ) इस तरह की रिपोर्ट प्रस्‍तुत कर रहा है, पिछले वर्ष दो अक्टूबर को भारत पर उसने “धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति में गिरावट” को चिह्नित करने के नाम पर कई आरोप लगाए थे। यदि इसके पूर्व 2023 की रिपोर्ट देखें तो इस अमेरिकी आयोग ने भारत पर यह आरोप मड़ा था कि भारत सरकार द्वारा विदेशों में कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और वकीलों को चुप कराने के प्रयास धार्मिक स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। भारत द्वारा धर्म या आस्था की स्वतंत्रता के व्यवस्थित, निरंतर और गंभीर उल्लंघन के कारण वह अमेरिकी विदेश विभाग से भारत को विशेष चिंता वाला देश (सीपीसी) घोषित करने का अनुरोध करता है।

इतना ही नहीं इस संस्‍थान की धृष्‍टता देखिए कि बिना किसी साक्ष्‍य के होते हुए भी यूएससीआईआरएफ के आयुक्त स्टीफन श्नेक ने कहा था, ‘‘कनाडा में सिख कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और संयुक्त राज्य अमेरिका में गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में भारत सरकार की कथित संलिप्तता बेहद परेशान करने वाली है और यह भारत के अपने देश और विदेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार रक्षकों को चुप कराने के प्रयासों में गंभीर वृद्धि को दर्शाता है।’’ 2020 की रिपोर्ट में, यूएससीआईआरएफ ने कहा कि ‘‘भारत ने 2019 में तीव्र गिरावट दर्ज की। राष्ट्रीय सरकार ने अपने मजबूत संसदीय बहुमत का इस्तेमाल राष्ट्रीय स्तर की नीतियों को लागू करने के लिए किया, जो पूरे भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं, खासकर मुसलमानों के लिए।’’

इसने कहा कि भारत के मुसलमानों के खिलाफ नरेन्द्र मोदी सरकार का पूर्वाग्रह नागरिकता कानूनों, गोहत्या, कश्मीर और धर्मांतरण पर भारत के कार्यों के माध्यम से दिख रहा है। रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या फैसले और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के आचरण का उल्लेख किया गया है। इसने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सिफारिश की कि वह भारत को ‘‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा परिभाषित व्यवस्थित, चल रहे और गंभीर धार्मिक स्वतंत्रता उल्लंघनों में संलग्न होने और सहन करने के लिए विशेष चिंता वाले देश के रूप में नामित करें।’’ इसने भारत के खिलाफ प्रतिबंधों की मांग की। इस यूएससीआईआरएफ संगठन ने 2020 से हर साल यह सिफारिश की है कि अमेरिकी विदेश विभाग भारत को सीपीसी के रूप में नामित करे।

सिर्फ 2020 ही क्‍यों, इसके पहले 2019-18 या इससे पूर्व की एससीआईआरएफ की जारी रिपोर्ट देखी जा सकती हैं, जिसमें बार-बार भारत के बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज पर निशाना साधते उसे भयंकर रूप से हिंसक बताते हुए अपराधी घोष‍ित किया गया है। किंतु भारत की उसके उलट हकीकत क्‍या है? वह यह है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के तहत धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को विशेष अधिकार दिए गए हैं। इन अधिकारों के ज़रिए अल्पसंख्यकों की संस्कृति और शैक्षणिक संस्थाओं को संरक्षित किया जाता है। भारत में अपने अल्‍पसंख्‍यकों के लिए उदात्‍तता का इससे बड़ा क्‍या उदाहरण हो सकता है कि आज भी उसकी दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्‍या (मुस्‍लिम) यहां अल्‍पसंख्‍यक है। ईसाई-मुस्‍लिम लगातार कन्‍वर्जन के विरोध में तमाम कानून होने के बाद भी सफल हो रहे हैं। उसके रिलीजियस संस्‍थानों पर कोई टैक्‍स नहीं लगता, उल्‍टे मुल्‍ला-मौलवियों को हर साल कई हजार करोड़ की राशि वेतन के रूप में दी जा रही है। बच्‍चों को विशेष सुविधाएं, रोजगार के कई अवसर योजनाओं के माध्‍यम से उन्‍हें यहां उपलब्‍ध कराए जा रहे हैं। वे बड़े-बड़े माइक लगाकर सार्वजनिक रूप से हर दिन पांच बार यह घोषणा कर रहे हैं कि उनका अल्‍लाह ही सबसे बड़ा है और सिर्फ उसी की प्रार्थना करना चाहिए। वह गैर मुस्‍लिमों (काफिरों) के लिए ऐसा बहुत कुछ बोलते हैं, जो नहीं बोला जाना चाहिए, फिर भी यहां का बहुसंख्‍यक समाज उन्‍हें हर संभव सहयोग प्रदान करने के लिए तत्‍पर रहता है। वे बहुसंख्‍यक समाज पर जब चाहें, जहां चाहें इकट्ठा होकर हमला कर देते हैं, फिर भी उनके अधिकारों में कोई कटौती नहीं होती। इतना सब होते हुए भी ये अमेरिका है कि भारत के बहुसंख्‍यक समाज हिन्‍दू को ही कटघरे में खड़ा करने का काम करता है!

यहां यह देखकर भी आश्‍चर्य होता है कि कानूनन हर साल अमेरिकी सरकार जो सदन में अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर रिपोर्ट पेश करती है, अपने यहां और अमेरिका खुद कैसे दुनिया के देशों पर अत्‍याचार करता है, रिपोर्ट में उसका कोई जिक्र तक नहीं करता। उल्‍टा यह दावा करता है कि इसका मूल्यांकन वैश्‍विक मानवाधिकार मानकों और विशेष रूप से मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 18 पर आधारित है, जिसमें कहा गया है, ‘‘हर किसी को विचार, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है; इस अधिकार में अपने धर्म या विश्वास को बदलने की स्वतंत्रता और अकेले या दूसरों के साथ समुदाय में और सार्वजनिक या निजी रूप से, शिक्षण, अभ्यास, पूजा और पालन में अपने धर्म या विश्वास को प्रकट करने की स्वतंत्रता शामिल है।’’

आश्‍चर्य होता है ये जानकर कि अमेरिका अपनी गिरेबान में नहीं झांकना चाहता। भारतीय मूल के बच्चों और लोगों के खिलाफ अमेरिका में लगातार नफरत बढ़ रही है। हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया जा रहा है। यहां तक कि भारतीय दूतावासों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। यहां ये प्रमाण है कि हिंदूफोबिया वास्‍तविक है। लगातार मंदिरों और भारतीयों पर हमलों की खबरें आ रही हैं। पिछले तीन साल में अमेरिका में 10 बड़े हमले मंदिरों पर किए गए। साथ ही अत्‍यधिक अभद्र भाषा का उपयोग किया गया। वैसे हर लोकतात्रिक शासन प्रणाली का यह कर्तव्‍य है कि वह अपने यहां रह रहे सभी अल्पसंख्यकों की रक्षा सुनिश्‍चित करे। लेकिन अमेरिका में आज हिंदू अल्पसंख्यकों के ऊपर हमले हो रहे हैं और उन्हें रोकने में यहां की सरकार असफल साबित हो रही है, इसके बाद भी वह उल्‍टा ज्ञान भारत को दे रहा है!

अमेरिकी थिंक टैंक- कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस का सर्वे दावा करता है कि अमेरिका में रहने वाले भारतीयों ने हिंदूफोबिया झेल रहे है। खुद फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन ने माना कि एंटी-हिंदू हेट क्राइम लगातार यूएस में बढ़े हैं। खासकर जिन इलाकों में हिंदू आबादी कम हैं, वहां उन्हें रेसिस्ट कमेंट या मारपीट का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा अमेरिकी रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन नेटवर्क कंटेजियन रिसर्च इंस्टीट्यूट का भी ये दावा सामने आ चुका है कि बीते समय में तेजी से एंटी-हिंदू नैरेटिव तैयार हुआ और हिंदुओं पर हमले में थोड़ी-बहुत नहीं, लगभग हजार गुना तेजी आई। इंस्टीट्यूट ने ये भी माना कि इन घटनाओं में किसी एक नस्ल या तबके का हाथ नहीं, बल्कि ये मिल-जुलकर किया जा रहा हेट-क्राइम है, इसे मुस्लिम और खुद को सबसे बेहतर मानने वाले श्वेत नस्ल के लोग, दोनों ही कर रहे हैं। हिन्दूफोबिया यहां किस तरह से हावी होता दिख रहा है, वह बीते वर्षों में इस घटना से समझा जा सकता है, न्यूयॉर्क के साउथ रिचमंड हिल्स में लगी महात्मा गांधी की मूर्ति को न केवल तोड़ा-फोड़ा गया, बल्कि स्प्रे पेंट से उसपर अश्लील भाषा भी लिख दी गई थी। हिन्दुओं के कपड़ों या धार्मिक सोच पर कमेंट हो रहे हैं, यहां तक कि उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कहा जा रहा है।

Hot this week

गंगा नदी के हालात का आकलन करने के लिए पर्यावरणविदों का विशेष अभियान

कोलकाता, 25 जनवरी (हि.स.)कोलकाता की एक पर्यावरण संस्था ‘मॉर्निंग...

Ratan Tata ने अपनी वसीयत में पेटडॉग का भी रखा ध्यान, जानिए अब कौन करेगा Tito की देखभाल

 हाल ही में देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने...

सुनहरा लम्हाः धरती पर लौटीं सुनीता विलियम्स

नासा की अनुभवी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके...
spot_img

Related Articles

Popular Categories