हल्द्वानी में भाषाई विविधता पर संगोष्ठी का शुभारंभ
हल्द्वानी, 30 अक्टूबर (हि. स.)। उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी; उत्तराखण्ड भाषा संस्थान, देहरादून और केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में “हिमालय के लोकवृत्त में उत्तराखण्ड का भाषा परिवार” विषय पर द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ विश्वविद्यालय परिसर में हुआ।
संगोष्ठी की शुरुआत पुस्तक मेले के उद्घाटन से हुई, जिसका उद्घाटन प्रसिद्ध भाषाविद् प्रो. वी. आर. जगन्नाथन ने किया। इस अवसर पर कुलपति प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी, प्रो. जगत सिंह बिष्ट, प्रो. देव सिंह पोखरिया और प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव मौजूद रहे। संगीत विभाग द्वारा प्रस्तुत समूहगान “उत्तराखण्ड मेरी मातृभूमि” ने कार्यक्रम को सांस्कृतिक गरिमा प्रदान की।
भाषाई विविधता और संरक्षण पर बल
प्रो. गिरिजा प्रसाद पांडे ने स्वागत भाषण में लुप्त होती भाषाओं के संरक्षण की आवश्यकता बताई। समारोह संयोजक डॉ. शशांक शुक्ल ने कहा कि “अब बोली और भाषा के कृत्रिम भेद को समाप्त करने का समय आ गया है।”
मुख्य वक्ता प्रो. वी. आर. जगन्नाथन ने कहा कि हिंदी की विविध बोलियाँ उसकी जीवंतता का प्रमाण हैं और क्षेत्रीय भाषाओं के संवाद से राष्ट्रीय एकता मजबूत होती है।
हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं पर चर्चा
प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि “भारत की भाषाएँ जोड़ती हैं, काटती नहीं; हिंदी को राष्ट्र की भाषा के रूप में देखा जाना चाहिए।” वहीं प्रो. जगत सिंह बिष्ट ने हिमालयी लोकवृत्त में उत्तराखण्ड की 14 प्रमुख और जनजातीय भाषाओं के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया।
मुख्य अतिथि गजराज सिंह बिष्ट (महापौर, हल्द्वानी) ने अंग्रेजी भाषा के प्रभुत्व और उसके सांस्कृतिक प्रभाव पर चिंता जताई।
वर्चुअल माध्यम से जुड़े प्रो. सुनील कुलकर्णी ने घटती भाषाओं के संरक्षण के लिए नीतिगत पहल की आवश्यकता पर जोर दिया।




