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हाईकोर्ट ने न्यायिक रिक्तियों पर जताई चिंता

प्रयागराज, 01 मई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायिक रिक्तियों से जुड़ी जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और उच्च न्यायालय प्रशासन के वकीलों से इस मुद्दे पर स्पष्ट निर्देश प्राप्त करने को कहा है। साथ ही याचिका को 21 मई को टॉप 10 मामलों में एक ताजा मामले के रूप में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति अनिल कुमार-दशम की खंडपीठ ने दिया है। अधिवक्ताओं ने न्यायालय से आग्रह किया कि सभी न्यायिक रिक्तियों को समयबद्ध और जवाबदेह प्रक्रिया के तहत जल्द से जल्द भरा जाए, ताकि हाईकोर्ट 160 न्यायाधीशों की स्वीकृत पूर्ण संरचनात्मक क्षमता पर काम कर सके, जो 25 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले राज्य के लिए अपर्याप्त है। याची के वकीलों ने कोर्ट को बताया कि जनवरी 2025 में जब याचिका दाखिल की गई थी, तब इलाहाबाद हाईकोर्ट में केवल 79 न्यायाधीश कार्यरत थे। जबकि स्वीकृत संख्या 160 थी। याचिका दाखिल होने के बाद कुछ नियुक्तियां अवश्य हुईं लेकिन वर्तमान में कुल 88 न्यायाधीश ही कार्यरत हैं। जिनमें लखनऊ पीठ के न्यायाधीश भी शामिल हैं। इसका अर्थ यह है कि हाईकोर्ट अब भी केवल 55 प्रतिशत क्षमता पर कार्य कर रहा है, जबकि 11.5 लाख से अधिक मामले लम्बित हैं।

वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश त्रिवेदी की ओर से दाखिल इस याचिका में न्यायिक रिक्तियों के कारण न्याय प्रणाली पर पड़ रहे गम्भीर असर की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है। कहा गया है कि हाईकोर्ट कार्यात्मक पक्षाघात की स्थिति में है, जहां प्रत्येक न्यायाधीश हजारों मामलों के बोझ से दबे हुए हैं। नियुक्तियों में हो रही लगातार देरी से न्यायपालिका में जन विश्वास कमजोर हो रहा है और न्याय की समयबद्ध उपलब्धता जैसे संवैधानिक अधिकार भी प्रभावित हो रहे हैं।

याचिका में न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया में संरचनात्मक सुधार की भी मांग की गई है, जिसमें मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर में तय समय सीमा का कड़ाई से पालन, पूर्व-निर्धारित योग्य उम्मीदवारों की सिफारिश, और जनसंख्या वृद्धि व लम्बित मामलों के अनुसार स्वीकृत न्यायाधीश संख्या की समय-समय पर समीक्षा शामिल है।

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