वाराणसी में वैदिक परंपरा का ऐतिहासिक क्षण, शंकराचार्य करेंगे घनपाठ ग्रंथ का लोकार्पण
वाराणसी। उत्तर प्रदेश की आध्यात्मिक राजधानी काशी में वैदिक परंपरा के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण आयोजन होने जा रहा है। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती सोमवार शाम लखनऊ से वाराणसी पहुंचेंगे। उनके आगमन पर संतों, बटुकों और श्रद्धालुओं द्वारा पुष्पवर्षा और जयघोष के साथ भव्य स्वागत किया जाएगा।
श्रीविद्यामठ, केदारघाट के प्रवक्ता संजय पांडेय ने बताया कि मंगलवार 16 दिसंबर की शाम 5:30 बजे श्रीविद्यामठ, केदारघाट में शुक्ल यजुर्वेद माध्यन्दिनी घनपाठ ग्रंथ का भव्य लोकार्पण समारोह आयोजित किया जाएगा। यह आयोजन विद्याश्री धर्मार्थ न्यास, काशी के तत्वावधान में संपन्न होगा।
पहली बार प्रकाशित होगा मौखिक वैदिक घनपाठ
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के करकमलों से इस ग्रंथ का विमोचन किया जाएगा। यह ग्रंथ अब तक केवल श्रुत परंपरा (मौखिक परंपरा) के माध्यम से संरक्षित था और पहली बार इसे मुद्रित रूप में प्रकाशित किया गया है। इसका प्रकाशन प्रकाशन सेवालाय, ज्योतिर्मठ बद्रीकाश्रम (हिमालय) द्वारा किया गया है।
इस महत्वपूर्ण वैदिक ग्रंथ के संपादक एवं शोधकर्ता डॉ. मणिकुमार झा हैं। कार्यक्रम का मुख्य विषय “शुक्ल यजुर्वेद माध्यन्दिनी शाखा की वैदिक परंपरा, अनुसंधान एवं संरक्षण” रहेगा।
वैदिक शोधार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी
यह ग्रंथ वैदिक अध्ययन, शोधार्थियों, शिक्षाविदों और सनातन परंपरा से जुड़े विद्वानों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। लोकार्पण समारोह में देश के प्रतिष्ठित शिक्षाविद एवं संस्कृत विद्वान उपस्थित रहेंगे, जिनमें प्रमुख रूप से—
- प्रो. हृदय रंजन शर्मा
- प्रो. श्रीकिशोर मिश्र
- प्रो. राममूर्ति चतुर्वेदी
- प्रो. पतंजलि मिश्र
- प्रो. महेन्द्र पाण्डेय
- प्रो. सुनील कात्यायन
- प्रो. कमलेश झा
शामिल होंगे।
सनातन परंपरा के संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम
यह आयोजन न केवल वैदिक साहित्य के संरक्षण का एक ऐतिहासिक प्रयास है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए सनातन ज्ञान को सुलभ बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।




