हिन्दू साम्राज्य दिवस अथवा श्रीशिव राज्याभिषेक दिवस भारतीय इतिहास में स्वराज्य की पुनर्स्थापना और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। छत्रपति शिवाजी महाराज, जिन्होंने मुगल दमन और अत्याचारों के युग में हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना की, भारत की स्वतंत्रता और आत्मसम्मान के अमर प्रतीक बन गए।
लेखक लोकेन्द्र सिंह, जो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं, अपने आलेख में लिखते हैं कि शिवाजी महाराज न केवल एक योद्धा थे, बल्कि समाज को संगठित कर आत्मगौरव की चेतना से भरने वाले युगपुरुष भी थे। उन्होंने न केवल मुगलों को ललकारा, बल्कि “स्व” पर आधारित शासन की संकल्पना दी, जो आज भी प्रासंगिक है।
इतिहासकार जी.एस. सरदेसाई और जदुनाथ सरकार के उद्धरणों के माध्यम से लेखक यह दर्शाते हैं कि यदि छत्रपति शिवाजी महाराज का उदय न हुआ होता, तो भारत भी उन देशों की तरह हो सकता था जहाँ बाहरी आक्रांताओं ने स्थानीय संस्कृति को पूरी तरह निगल लिया।
शिवाजी महाराज का शासन लोकहित और धर्म-संरक्षण पर आधारित था। जल, जंगल, जमीन और जन—सभी के कल्याण के लिए नीतियाँ बनीं। उन्होंने नौसेना को बढ़ावा दिया, न्याय आधारित प्रशासन स्थापित किया और प्रजा को भयमुक्त जीवन का अधिकार दिलाया।
आज जब भारत एक आत्मनिर्भर राष्ट्र की ओर बढ़ रहा है, तब शिवाजी महाराज का स्वराज्य का सिद्धांत मार्गदर्शक बनकर सामने आता है। लेखक के अनुसार, देश में आज ऐसी सरकार है जो छत्रपति की विचारधारा को आत्मसात कर राष्ट्रहित के मार्ग पर अग्रसर है।