महाकुम्भ नगर, 29 जनवरी (हि.स.)। प्रयागराज महाकुम्भ के तीसरे स्नान पर्व मौनी अमावस्या के मौके पर श्रद्धालु धैर्य, संयम और सुरक्षा के साथ अमृत स्नान करें। आपका सुरक्षित घर पहुंचना ही संगम का प्रसाद है। यह बात मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर बुधवार काे परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कही।
उन्होंने कहा कि मौनी अमावस्या, स्नान, ध्यान और दान की अमावस्या है। यह अवसर हमें यह याद दिलाता है कि हम अपने समय, ऊर्जा और प्रतिभा का सदुपयोग राष्ट्र की सेवा में करें। दान केवल भौतिक वस्तुओं का नहीं, बल्कि अपने समय, योग्यता और ज्ञान का भी होना चाहिए। यह समय है, जब हमें अपने भीतर की दिव्यता को पहचाने और उसे समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित करें।
स्वामी ने श्रद्धालुओं से यह भी अपील की कि वे स्नान करने के दौरान अपनी सुरक्षा और परिवार के सदस्यों की देखभाल करें। यही संगम का सच्चा संयम है। हर घाट संगम है, हर स्थान संगम है, लेकिन संगम का वास्तविक अर्थ तब ही पूरा होता है जब आप अपनी यात्रा को सुरक्षित और शांतिपूर्वक समाप्त करें।
स्वामी चिदानन्द ने कहा कि महाकुंभ के इस ऐतिहासिक पर्व में, जहां आस्था और श्रद्धा की गहरी अभिव्यक्ति है, वहां हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हम अपने समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी से अनजान नहीं रहें। यह समय हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने और अपने आंतरिक स्वरूप को पहचानने का है।
स्वामी ने कहा कि प्रशासन और सरकार द्वारा श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए व्यापक प्रबंध किए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महाकुंभ की गतिविधियों पर निरंतर निगरानी रख रहे हैं । उन्होंने श्रद्धालुओं की सुरक्षा और उनके कल्याण के लिए विशेष ध्यान दिया है।
चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हम सभी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपने आस-पास के श्रद्धालुओं के साथ सहयोग और सद्भावना के साथ महाकुंभ की पुण्य भूमि पर स्नान करें। जहां पर आप हैं वहीं आसपास के घाटों में अमृत स्नान करें । याद रखें कि हर घाट संगम है। संगम का वास्तविक अनुभव तभी हो सकता है, जब आप धैर्य, संयम और सुरक्षा के साथ स्नान करें।
महाकुंभ का यह पर्व हर व्यक्ति के जीवन में एक नई चेतना का संचार करता है। स्वामी जी ने श्रद्धालुओं से कहा, आपका सुरक्षित घर लौटना ही संगम का असली परिणाम है। यही संगम और पूज्य संतों की भावना भी है।