(साक्षात्कार) महाकुम्भ नगर, 31जनवरी (हि.स.)। ऋतेश्वर जी महाराज संत परंपरा में रहने के बावजूद प्रेरक वक्ता, लेखक, आध्यात्मिक गुरू और मार्गदर्शक भी हैं। भारत के साथ-साथ देश-विदेश में ‘राधा-माधव महोत्सव’ के जरिए लोगों को मार्गदर्शन करने का काम भी करते हैं। इनका धर्म और विज्ञान के समन्वय पर काफी जोर होता है। प्रयागराज महाकुम्भ के दौरान इनसे हिन्दुस्थान समाचार के राष्ट्रीय समन्वयक एवं महाकुम्भ प्रभारी राजेश तिवारी ने विस्तृत बातचीत की है। पेश हैं उसके प्रमुख अंश…
– महाकुम्भ क्या है? प्रयागराज महाकुंभ किस तरह लोगों को आध्यात्मिक संदेश दे रही है?
उत्तर- प्रयागराज में लगने वाला महाकुम्भ बृहस्पति ग्रह से जुड़ा है। ज्योतिष के मुताबिक जब बृहस्पति ग्रह वृषभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है,तब प्रयागराज में महाकुम्भ का आयोजन होता है। सूर्य की स्थिति दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर हो तभी यह स्थिति बनती है। इसका आध्यात्मिक संदेश है कि मूल में हम सब एक हैं। जीवन संगम का नाम है। दुख-संताप से पीड़ित मानव आनंद की ओर जाए। क्योंकि हम जड़ में आनंद स्वरूप ही हैं। मेल-मिलाप,उत्सव,आध्यात्मिक उन्नति,सत्य,ज्ञान,दान का मिश्रण ही महाकुम्भ है। इन्हें हम जीवन में आत्मसात करें यही महाकुम्भ का संदेश रहता है।
– जो व्यक्ति धर्म-ज्योतिष को नहीं मानते, उसे कैसे समझा पाएंगे कि महाकुम्भ के क्या निहितार्थ हैं?
उत्तर- आप अगर इसे जानने-समझने में सक्षम नहीं हैं तो इतना जान लीजिए कि एक व्यक्ति के शरीर में 70 प्रतिशत जल तत्व है। मस्तिष्क में तो 90 प्रतिशत तक है। ज्योतिष में चंद्रमा को मन का देवता माना गया है। पूर्णिमा के दिन समुद्र में उठ रहे ज्वार भाटा की वजह-चंद्रमा है। तो क्या शरीर के दो तिहाई भाग (जल तत्व) पर चंद्रमा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता होगा। अवश्य पड़ता है। इसीलिए मैं शुरू से कहता रहा हूं कि धर्म को आस्था से ज्यादा तर्क और विज्ञान की कसौटी पर कसा कीजिए। बात प्रमाणित लगे तो मानिए अन्यथा की स्थिति में आप स्वतंत्र हैं।
– कई लोग इसे बस यूं ही मानते हैं?
उत्तर- मानते होंगे। विधर्मी किस काल, युग में नहीं रहे हैं। जिन्हें इसकी समझ नहीं होगी वे घृणा के पात्र नहीं है। बल्कि वह तो बेचारा है। इसे सही ढंग से समझना होगा। उन्हें सही ढंग से समझाना होगा। समझ बनेगी तब ही स्वीकार्यता होगी। जानोगे तभी मानोगे। सोना को आप पीतल कह दो। फिर बेच दो। अगला खरीद भी लेगा। लेकिन इससे सोना क्या पीतल हो जाएगा? नहीं ना। तो फिर नासमझों को जो समझना है समझने दीजिए। हमारा काम है सोना को सोना बतलाते रहना।
– महाकुम्भ में आने वाली भीड़भाड़ कैसे संतुलित रहती है?
उत्तर- यह तो शोध का विषय है। एक होता है अनुशासन। एक होता है आत्मानुशासन। अनुशासन सरकार नियंत्रित होती है। आत्मानुशासन समाज नियंत्रित होता है। व्यक्ति स्वयं में अनुशासित होते हैं। इसीलिए सब कुछ संतुलित दिखता रहता है। यह भीड़ तो है पर भाड़ नहीं है। सभी का एक उद्देश्य होता है-आध्यात्मिक उन्नति। जहां धर्म, अध्यात्म होगा वहां प्रकृति वश सब कुछ नियंत्रित रहेगा। मानव का यह स्वभाव है, परम के आगे नतमस्तक रहना। यही विनम्रता सब कुछ संतुलित रखती है।
– भारत में वर्णाश्रम की बात की गई है। आधुनिक समय में इसे खारिज किया जाता है। इसे सभी समस्याओं का जड़ भी बताया जाता है। सच्चाई क्या है?
उत्तर- सच्चाई यह है कि ऐसा बोलने-समझने वाले लोग नासमझ हैं। धूर्त भी हो सकते हैं। इस संसार में सभी की जाति है। यथा- पशुजाति, पक्षीजाति, केंचुए की जाति, सरीसृप की जाति, इसी तरह मानव भी एक जाति है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं पर इससे कुछ कम भी नहीं। मानव जीवन यापन हेतु अलग-अलग काम करता है। यही काम मानव की पहचान बन जाती है। जैसे चिकित्सक को डॉक्टर साहब बोलते हैं, फिर नाम कुछ भी हो। विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले को प्रोफेसर साहब। तो क्या डॉक्टर प्रोफेसर से कम या ज्यादा मान्य हैं। अरे मूर्ख तो वे लोग हैं जो तुलना करके एक को बड़ा और दूसरे को छोटा सिद्ध करने में लगे रहते हैं। यह धूर्त राजनीतिज्ञों की वजह से हुआ है। समाज और व्यक्ति को आज भी इन चीजों से कोई परेशानी नहीं है। बस समझ ठीक होनी चाहिए।
– वर्तमान समय में लोग इतना हताश-निराश क्यों हो गए हैं?
उत्तर- सही सवाल पूछा आपने। आप अपना मूल स्वभाव छोड़ देंगे। जड़ से कट जाएंगे तो क्या आप बचे और बने रहेंगे। नहीं ना। बस यही हुआ है। व्यक्ति ने भौतिक विकास तो बहुत किया है पर नैतिक विकास का क्या। सुविधा के नाम पर समय बचा रहे हैं पर लोगों से पूछिए तो कहेंगे मरने की भी फुर्सत नहीं है। यह नया दौर मानव को लील लिया है। आपको आश्चर्य होगा कि विश्व में 88 प्रतिशत, भारत में 74 प्रतिशत और विश्व के सबसे ज्यादा विकसित देश अमेरिका में तो 90 प्रतिशत लोग मानसिक रूप से बीमार हो चले हैं। शांति गंवा दी है। जे. कृष्णमूर्ति से किसी ने पूछा-विकास क्या है? उन्होंने पलट कर पूछा किसका विकास! बाहर का या अंदर का? हमने वाह्य उन्नति खूब की है। पर अंदर से खोखले हो गए हैं। इसीलिए तो महाकुम्भ आयोजित हो रहा है। खाली आए हो अंदर से भरकर जाओ। समस्या खत्म हो जाएगी।
– सनातन क्या है?
उत्तर- सत्य की खोज ही सनातन है। मैं कौन हूं? जानने की यात्रा सनातन है। जिसका न तो शुरुआत पता है ना अंत पता है, वह सनातन है। लेकिन यह तो हुआ आध्यात्मिक व्याख्या। दुनियावी शब्दावली में सत्य ही सनातन है और सनातन ही सत्य है।
– आधुनिक शिक्षा पर क्या कहेंगे?
उत्तर- क्या कहना। परिणाम और रुझान आना शुरू हो गया है। मैं विज्ञान विरोधी नहीं हूं। धर्म और विज्ञान का तालमेल ही संसार को बचाएगा। इसके असंतुलन का ही परिणाम है अशांति। फिर वह दैहिक, भौतिक या आध्यात्मिक हो। सभी को अपने गिरफ्त में ले लेता है। भारत को पीलिया का बीमारी हो गया है। प्रेमवश हम शुद्ध घी पिलाने लगे। मरना तो तय है। पहले रोग का इलाज होना चाहिए। जो यह समझेगा, वही बच पाएगा या बचा पाएगा। मैकाले शिक्षा ने पूरा बर्बाद कर दिया। आज नासा बताता है, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण कब लगेगा। सुदूर गांव में बैठा व्यक्ति पंचांग देखकर हजारों सालों से बताता आ रहा है कि यह कब लगेगा। आप कहें तो ठीक मैं कहा तो गलत। पर सत्य का क्या? इसकी परवाह किसे है। जो संस्कृत जर्मनी के चौदह विश्वविद्यालय में पढ़ाया जा रहा है, उसकी डिकोडिंग की जा रही है। उसके साथ भारत में क्या हो रहा है। जिसकी संस्कृति में संस्कृत घुला-मिला पड़ा है। वह वहीं तिरस्कृत भाव से कहीं एक कोने में पड़ा हुआ है। हमें विश्व गुरु बना है तो वापस मुड़ना होगा। वरना हम सिर्फ अनुयायी बनकर रह जाएंगे। अगुआ की भूमिका खत्म हो जाएगी।
– धर्मांतरण क्या है?
उत्तर- इसके मुख्य कारण भ्रष्टाचार है। यह धर्मांतरण नहीं लोभांतरण है। किसी के मजबूरी का फायदा उठाकर धर्म परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। धर्मांतरण कुछ भी नहीं है, यह झंडा और डंडा का मामला है। संख्या बढ़ा लेने से कोई भी व्यक्ति धार्मिक नहीं हो सकता। कोई भी संगठन धार्मिक नहीं घोषित हो जाता। इससे बचा जाना चाहिए।
– सनातन बोर्ड पर आप क्या कहना चाहेंगे?
उत्तर- नहीं होना चाहिए। पर अभी इसकी जरूरत है। वक़्फ़ बोर्ड है तो सनातन बोर्ड भी होना ही चाहिए। फिर सिर्फ सनातन ही क्यों बौद्ध, जैन, सिख, पारसी सभी बोर्ड होनी चाहिए। यह क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया है। सबको समाप्त किया जाना चाहिए और समान नागरिक संहिता लागू करना चाहिए। यही एकमात्र इलाज है। नहीं तो परिणाम गंभीर होने वाला है।
– आप सनातन विश्वविद्यालय की स्थापना कर रहे हैं। थोड़ा विस्तार से बताइए?
उत्तर- ‘गर्भ से गर्व तक’ यही मूल मंत्र है। शुरू में इसे वाराणसी में खोलना तय था। पर जमीन उतनी मिली नहीं। एक हजार एकड़ पर यह विश्वविद्यालय स्थापित होगा। शुरुआत सौ एकड़ से करने जा रहे हैं। ज्ञान-विज्ञान का यहां अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। अन्य राज्यों में भी जमीन तलाशी जा रही है। भारत पुनः सोने की चिड़िया बने, विश्व गुरु बने, इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है। अपनी खो चुकी, सोई हुई परंपरा और संस्कृति को खोजना और जानना ही इस विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य होगा।
– युवाओं के लिए क्या संदेश है?
उत्तर- आपके कंधों पर देश का दायित्व है। खूब मेहनत करें पर साथ ही साथ धर्म और संस्कृति पर गर्व भी करें। विज्ञान को अपनाएं पर मूल ज्ञान को भूले नहीं। मेले में अकेला और अकेले में मेला लगाने की कला और मर्म को जाने-समझें। देश को इस आयु वर्ग से काफी उम्मीद है, इस बात को हमेशा याद रखें।