शिक्षा नीति को लेकर तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार की खासी रस्साकशी चल रही है। आठ महीने पहले, तमिलनाडु सरकार ने अपनी खुद की शिक्षा नीति (एसईपी) बनाने के लिए जस्टिस मुरुगेसन की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी लेकिन अभी तक यह पता नहीं चल पा रहा है कि यह नई शिक्षा नीति कब लागू होगी। राज्य सरकार के आइडियल व्यवहार तथा राजनीतिकरण से तमिलनाडु राज्य के विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है।
दरअसल, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 लागू की है जिसका उद्देश्य देश की शिक्षा प्रणाली को बदलना है। तमिलनाडु सरकार को इस नीति के कुछ हिस्सों से विशेष आपत्ति है। केंद्र सरकार की शिक्षा नीति के विरोध में वह अपनी अलग शिक्षा नीति बनाना चाहती है। इसी कारण से एसईपी में देरी हो रही है।
केंद्र सरकार विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को एनईपी लागू करने के लिए बार-बार कह रही है। केंद्र के निर्देशों के अनुसार जो संस्थान इसे लागू नहीं कर रहे हैं उनकी फंडिंग रोकी जा रही है। हाल ही में केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत तमिलनाडु की 570 करोड़ रुपये से ज्यादा की फंडिंग रोक दी है। केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि जो उच्च शिक्षा संस्थान एनईपी को लागू करेंगे उन्हें बेहतर ग्रेडिंग दी जाएगी। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में एनईपी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए छात्रों को “एनईपी एम्बेसडर” बनाने की बात कही जा रही है।
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि एनईपी के कुछ पहलू छात्रों के हित में नहीं हैं। सरकार को खासतौर पर “अकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट” (एबीसी) और “मल्टीपल एंट्री और मल्टीपल एग्जिट” (एमईएमई) प्रणाली से आपत्ति है। तमिलनाडु सरकार का मानना है कि एबीसी में पारदर्शिता की कमी है और एमईएमई से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ेगा।
केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार, मद्रास विश्वविद्यालय और अन्ना विश्वविद्यालय जैसे कई राज्य विश्वविद्यालय एनईपी के कुछ हिस्सों को लागू कर रहे हैं। मद्रास विश्वविद्यालय ने एबीसी प्रणाली लागू कर दी है और छात्रों के लिए एक गाइड भी जारी किया है। विश्वविद्यालय का कहना है कि अगर वे एबीसी लागू नहीं करते हैं तो उन्हें दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों से कोई राजस्व नहीं मिलेगा। अन्ना विश्वविद्यालय ने भी एमईएमई प्रणाली लागू कर दी है। विश्वविद्यालय का कहना है कि इससे छात्रों को शिक्षा में विशेष सुविधा मिलेगी।
पूर्व अन्ना विश्वविद्यालय के कुलपति ई. बालागुरुसामी का कहना है कि एनईपी के उद्देश्य अच्छे हैं लेकिन, इसे जल्दबाजी में लागू करना सही नहीं है। उनका मानना है कि ऑनलाइन प्रवेश और दोहरी डिग्री जैसे कदम शिक्षा की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा सकते हैं। राज्य साझा स्कूल प्रणाली – तमिलनाडु (कामन स्कूल सिस्टम-तमिलनाडु) के अध्यक्ष पी. रत्नसबपति का कहना है कि यूजीसी सिर्फ एक मार्गदर्शक संस्था है और उसके पास दंड देने का अधिकार नहीं है। उनका मानना है कि विश्वविद्यालयों को यूजीसी सूची से हटाने की धमकी देना यूजीसी के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
केंद्र सरकार एनईपी को लागू करने में तेजी लाई है। हाल ही में कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए “नो डिटेंशन पॉलिसी” को हटा दिया गया है। अब अगर छात्र परीक्षा में फेल होते हैं तो उन्हें दोबारा परीक्षा देनी होगी। इसी प्रकार एनईपी के तहत 5+3+3+4 शिक्षा प्रणाली लागू की जा रही है जो पुरानी 10+2 प्रणाली को बदल रही है। क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग और मेडिकल कोर्स भी शुरू किए जा रहे हैं। डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है।
वर्ष 2025 में केंद्र सरकार एनईपी को और अधिक व्यापक रूप से लागू करने पर ध्यान दे रही है। तमिलनाडु सरकार को अपनी शिक्षा नीति पर जल्द ही फैसला लेना होगा। यह देखना होगा कि तमिलनाडु सरकार केंद्र सरकार के दबाव में अपनी नीति लागू करती है या नहीं। वैसे केंद्र और राज्य सरकार के बीच इस उलझन का सबसे ज्यादा असर छात्रों पर पड़ रहा है। उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि उन्हें किस नीति के अनुसार पढ़ाई करनी है। तमिलनाडु सरकार की हठ से विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में भी अनिश्चितता का माहौल है।