बांकुड़ा, 1 अक्टूबर।
महाष्टमी की संध्या पर बांकुड़ा के विष्णुपुर में 1029 वर्ष पुरानी परंपरा फिर से जीवंत हुई। मल्ल राजाओं द्वारा स्थापित मृण्मयी मंदिर में इस अवसर पर तोप की गर्जना गूंजी, जिससे पूरे शहर में भक्तों और इतिहास प्रेमियों में उत्साह और आस्था की लहर दौड़ गई।
मृण्मयी मंदिर की स्थापना राजा जगत मल्ल ने 997 ईस्वी में की थी। इतिहास के अनुसार, राजा ने देवी मां मृण्मयी के स्वप्नदर्शन के बाद अपनी राजधानी प्रद्युम्न पुरी से विष्णुपुर स्थानांतरित की और यहां पहला मंदिर बनवाया। मूल मंदिर अब मौजूद नहीं है, लेकिन राधे श्याम मंदिर के पास स्थित नवनिर्मित संरचना इसे पुनर्जीवित करती है।
मंदिर में देवी दुर्गा की पूजा मां मृण्मयी के रूप में की जाती है। गंगा की मिट्टी से बनी मूर्ति अब भी सुरक्षित है, जो भक्तों के लिए आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। ख्रिस्तीय वर्ष 997 से इस परंपरा का निरंतर पालन होता आया है और राजपरिवार के उत्तराधिकारी आज भी इसे बनाए रख रहे हैं।
दुर्गोत्सव की शुरुआत मिट्टी के “घट” की स्थापना से होती है। इसके बाद बड़ी ठकुरानी, मझली ठकुरानी और छोटी ठकुरानी की पूजा की जाती है। महाष्टमी की संध्या पर मंदिर के पास मोर्चा पहाड़ पर गूंजती तोप की गर्जना देवी की महापूजा और बलि के प्रारंभ का प्रतीक मानी जाती है।
स्थानीय वरिष्ठजन बताते हैं कि यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान है। बांकुड़ा प्रशासन और राजपरिवार हर वर्ष इस पवित्र परंपरा को सुरक्षित और पारंपरिक रूप से मनाने के लिए विशेष इंतजाम करते हैं।