यशपाल जयंती: यशपाल का साहित्य क्रांतिकारी साहित्य, आज का समय क्रांति का समय नहीं — रेखा वशिष्ठ
मंडी, 3 दिसंबर। भाषा एवं संस्कृति विभाग की ओर से आयोजित जिला स्तरीय लेखक गोष्ठी और कवि सम्मेलन में क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल की जयंती पर साहित्य जगत ने उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिमाचल कला, संस्कृति और भाषा अकादमी की सदस्य एवं वरिष्ठ साहित्यकार रेखा वशिष्ठ ने की।
कार्यक्रम संबोधित करते हुए रेखा वशिष्ठ ने कहा कि यशपाल का साहित्य मूल रूप से विचार-क्रांति पर आधारित है। उनके भीतर क्रांति, बदलाव और सामाजिक न्याय के लिए प्रबल उत्साह था, जो उनके लेखन में स्पष्ट दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि यशपाल की पहचान वामपंथी वैचारिक लेखक के रूप में भी है, लेकिन साहित्य को केवल किसी विचारधारा की दृष्टि से देखना उसके पूर्ण मूल्यांकन को सीमित कर देता है।
“प्रेमचंद जितना नहीं पढ़ा गया यशपाल”—इस पर विचार जरूरी
रेखा वशिष्ठ ने कहा कि यशपाल जितने क्रांतिकारी और गहन विचारों वाले लेखक थे, उतना उनका अध्ययन आम पाठकों में नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि यह समझना ज़रूरी है कि प्रेमचंद और अन्य सामाजिक यथार्थवादी लेखकों के व्यापक पाठक क्यों बने, जबकि यशपाल का साहित्य सीमित दायरे में रह गया।
उन्होंने कहा कि साहित्य के दो दृष्टिकोण सदैव साथ-साथ चलते हैं—
- साहित्य अपने आप में पूर्ण है, और
- साहित्य जीवन के लिए होना चाहिए।
यशपाल इन दोनों ध्रुवों के बीच एक मजबूत सेतु की तरह खड़े नज़र आते हैं।
“आज का समय क्रांति का समय नहीं”
रेखा वशिष्ठ ने कहा कि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था और बदलते समय में प्रत्यक्ष क्रांति की आवश्यकता पहले जैसी नहीं है। आज का समय संवाद, विचार-विमर्श और सामाजिक सह-अस्तित्व का समय है। साहित्य को भी समय के अनुरूप अपना स्वरूप बदलना पड़ता है।
कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यकारों और कवियों ने यशपाल की रचनाओं, विचारों और साहित्यिक योगदान पर अपने विचार रखे। भाषा अधिकारी रेवती सैनी ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया।



