संथाली भाषा में संविधान: लोकतंत्र की नई शक्ति
नई दिल्ली में भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा भारत के संविधान को संथाली भाषा में प्रकाशित किए जाने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस पहल की जमकर सराहना की है।
प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह कदम संवैधानिक जागरूकता और लोकतांत्रिक सहभागिता को मजबूत करेगा।
प्रधानमंत्री ने लिखा—
“यह एक सराहनीय प्रयास है। संथाली भाषा में संविधान से संवैधानिक जागरूकता और लोकतांत्रिक भागीदारी को गहराई मिलेगी। भारत को संताली संस्कृति और राष्ट्रीय प्रगति में संथाली समाज के योगदान पर गर्व है।”
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ऐतिहासिक पहल
राष्ट्रपति मुर्मु ने गुरुवार को संथाली भाषा में भारत के संविधान का औपचारिक लोकार्पण किया। यह संस्करण अलचिकी लिपि में प्रकाशित किया गया है, जो संथाली भाषा की पारंपरिक और मान्यता प्राप्त लिपि है।
यह कदम आदिवासी समुदायों को संविधान से जोड़ने और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल माना जा रहा है।
संथाली भाषा का संवैधानिक महत्व
संथाली भाषा भारत की प्राचीनतम जीवित भाषाओं में से एक है। इसे संविधान के 92वें संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था।
यह भाषा मुख्य रूप से
झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार में रहने वाले लाखों आदिवासी समुदायों द्वारा बोली जाती है।
संविधान का संथाली संस्करण जारी होना न केवल भाषाई समावेशन को बढ़ावा देता है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारत का लोकतंत्र हर भाषा और हर समुदाय को समान सम्मान देता है।




