उज्जैन, 16 जनवरी (हि.स.)। शुक्रवार,17 जनवरी को संकट चतुर्थी है। इस व्रत को विधि विधान से करने पर पूरे परिवार को सुख-समृद्धि मिलती है ओर सारे संकटों से मुक्ति मिलती है। यह दावा है ज्योतिषाचार्य पं.अजयशंकर व्यास का। उनके अनुसार वैदिक ज्योतिष काल गणना के अनुसार, संकट चतुर्थी के दिन शुभ योग-सौभाग्य योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन माघ नक्षत्र पर बव, बालव, करण का योग भी है।
पं.व्यास के अनुसार शुक्रवार को चतुर्थी होने से गणेशजी, लक्ष्मीजी और शुक्र ग्रह की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस दिन पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दिन भगवान श्री गणेश का व्रत और पूजा इस कारण से करना चाहिए-
* यह व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान की उन्नति और भाग्योदय के लिए रखा जाता है। * गणेशजी की आराधना एवं व्रत रखने से संतान का भविष्य उज्जवल बनता है और उस पर हमेशा गणेशजी की कृपा बनी रहती है।* जीवन में आने वाली सभी समस्याएं दूर होती हैं। * बुद्धि का विकास होता है और ज्ञान में वृद्धि होती है। * जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है।* घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। * धन-धान्य की प्राप्ति होती है और व्यापार में वृद्धि होती है। * इस दिन दान करें,व्रत करें,संतान के हाथों से पूजा करवाएं।
पूजा का शुभ मुहूर्त
* प्रात: 6.22 बजे से 7.10 बजे तक
* अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12.10 बजे से 12.52 बजे तक
* गोधूलि मुहूर्त: शाम 5.56 बजे से शाम 6.18 बजे तक
धार्मिक मान्यता: गणेशजी का परिवार बहुत ही पवित्र और आदर्श माना जाता है। उनके परिवार में निम्नलिखित सदस्य हैं- पिता शंकर भगवान, माता पार्वती,भाई कार्तिकेय, पत्नि रिद्धि ओर सिद्धि,पुत्र शुभ ओर लाभ।
संकट चतुर्थी की पौराणिक कथा
संकट चतुर्थी की कथा भगवान गणेश से जुड़ी हुई है। एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे, तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेशजी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वही देवताओं की मदद करने जाएगा। भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, परंतु गणेशजी सोच में पड़ गए। गणेशजी अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। इधर परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा। श्रीगणेश ने कहाकि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे।
तभी से यह शास्त्रीय मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी।