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प्रयाग के पण्डों का लेखा जोखा कौन रखता है? मिलिए प्रयाग के पण्डों के पुरोहित से

महाकुंभ नगर, 17 जनवरी (हि.स.)। तीर्थराज प्रयाग के तीर्थ पुरोहित (पण्डे) देश—दुनिया में रचने—बसने वाले अपने यजमानों की कई पुशतों का लेखा जोखा रखते हैं। ऐसे में इस बात की जिज्ञासा होती है कि जो पण्डे सबका लेखा जोखा रखते हैं, उनका लेखाा जोखा कौन रखता है? उनका पुरोहित कौन है? जी हां, प्रयाग के पण्डों का भी पुरोहित है, जो किसी जमाने मे सैकड़ों मील दूर से प्रयाग के पण्डों के आग्रह और आंमत्रण पर यहां आया था। यही पुरोहित प्रयाग के पण्डों का लेखा जोखा रखते हैं, पूजा पाठ करवाते हैं, और उनसे दान दक्षिणा लेते हैं।

कौन है पण्डों के पुरोहितवर्तमान में प्रयाग के पण्डों के पुरोहित का कार्य मोहन जी हरन्या एवं उनका परिवार करता है। बस्की खुर्द, दारागंज निवासी 82 वर्षीय मोहन हरन्या जी कहते हैं, ‘किसी समय प्रयाग के पण्डों के सामने ये प्रश्न आया कि हम सबका लेखा जोखा रखते हैं, कर्मकाण्ड करवाते हैं, हमारे कर्म कौन करवाएगा? ऐसे में पुरोहित कार्य के लिए निवेदन करके आग्रह पूर्वक ब्राह्म्णों को आमत्रिंत किया गया था।’

हरन्या जी बताते हैं— ‘हरियाणा के सागर राज लाल डोरा, जिला ​जींद हरियाणा से गौतम और भारद्वाज गौत्र (गौड ब्राह्म्ण) के दो परिवार प्रयाग में पण्डों के पुरोहित कार्य करवाने के लिये आये थे। वर्तमान में इन्हीं दो परिवारों के सदस्य प्रयाग के पण्डों के पुरोहित हैं।’

अब वैसी बात नहीं रहीहरन्या जी के अनुसार— ‘अब पुरोहित का उतना महत्व नहीं रह गया, जैसा पुराने जमाने में, पुरोहित का अर्थ है जो पर का हित करे। पुरोहित यजमान का संरक्षक होता है। वह उसके अच्छे बुरे हर वक्त में उसके साथ खड़ा होता है। जहां कोई कमी पेशी हुई वो पुरोहित पूरी कर देता है।’ वो आगे कहते हैं—’अब समय तेजी से बदल रहा है। पुरानी पीढ़ी के लोग आज भी पुरोहित को पूरा आदर मान देते हैं। अफसोस इस बात का है कि नयी पीढ़ी संस्कारों से दूर हो रही है। ऐसे में पुरोहित का कौन पूछ रहा है।’

यजमानों को लेखा जोखाहरन्या जी ने बताया कि, ‘हमारे यजमान तो प्रयाग के पण्डे हैं। पण्डे अपने लाखों—लाख यजमानों का लेखा जोखा रखते हैं। और हम इन पण्डों का लेखा जोखा रखते हैं।’ हालांकि वे मानते हैं कि अब अपने यजमानों के लेखा जोखा की लिखा पढ़ी जिस तरीके से होनी चाहिए, वैसे हो नहीं पा रही है।

अगली पीढ़ी के कंधों पर भारहरन्या जी के दोनों पुत्र जितेन्द्र कुमार गौड और सुरेन्द्र कुमार गौड अपने पिता जी के साथ पुरोहित का काम काज संभाल रहे हैं। सुरेन्द्र कुमार गौड ने बताया​ कि, ‘अब हम अपने यजमानों का लेखा जोखा सहेज रहे हैं। थोड़ा समय इसमें लगेगा लेकिन अब ये रिकार्ड दर्ज किया जा रहा है।’

सुरेन्द्र आगे कहते हैं कि, ‘सरकार को पुरोहितों को आर्थिक मदद देनी चाहिए, जिससे यजमानों का लेखा जोखा सहेजने में सुविधा हो।’ वो कहते हैं— ‘यजमानों का लेखा जोखा मात्र व्यक्तिगत ब्यौरा नहीं है, ये हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है। ये कालक्रम को वो पक्ष है जो किसी परिवार की पीढ़ियों का हीं नहीं, सभ्यता और संस्कृति के विकास के उज्जवल पक्ष को भी उजागर करता है।’

तीर्थ पुरोहित महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष पं0 अमित आलोक पाण्डेय कहते हैं, ‘हमारे पुरोहित यहां कब आकर बसे इसकी निश्चित तिथि तो मालूम नहीं है। लेकिन सदियों से ये परंपरा चली आ रही है। हमारे पुरोहित हमारे लिए स​ब कुछ है, वो हमारे संरक्षक हैं।’

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