तरुणाई एक विशेष अनुभूति है। स्वप्न देखने की अभिलाषा। इस अनुभूति में विराट आकाश भी छोटा हो जाता है। तरुणाई है चेतन मन का विशेष छन्द। तब नाचने का मन करता है। ऊर्जा का गहन अतिरेक, ओजस् तेजस से भरपूर चित्त। सतत् पुनर्नवा गतिशीलता। जिज्ञासु प्रश्नाकुलता। धरती से आकाश तक उड़ान को तत्पर जिजीवीषा। मन में शिव संकल्प। शिव संकल्प के प्रति श्रद्धा और संकल्प में बल। लक्ष्य के प्रति सतत् संकल्पबद्ध अनुभूति का नाम है-तरुणाई। युवा होना सिर्फ कम उम्र का होना नहीं है। तरुणाई की अनुभूति में उम्र का कोई बंधन नहीं होता। 80 बरस के युवा देखे गये हैं और 25 बरस के वृद्ध। सतत् जिज्ञासा, सतत् स्वप्न, सतत् कर्म, सतत् मस्त मन और स्वप्न-उमंग से भरपूर आत्मचेतन का नाम युवा है। स्वप्नहीनता और निराशा बुढ़ापा है। गहन आशा और शिव संकल्पों वाला मन ही तरुणाई है। मनुष्य की तरह राष्ट्र भी जीवमान सत्ता हैं। राष्ट्र भी उम्र से बूढ़े नहीं होते, कम उम्र के राष्ट्र युवा नहीं होते। पाकिस्तान की उम्र अभी 77 बरस ही है और भारत हजारों वर्ष प्राचीन। तो क्या भारत बूढ़ा है? और पाकिस्तान युवा? नहीं भारत चिरयुवा है और नित्य नूतन भी। पाकिस्तान इतिहास के मध्यकाल में ही जीने के कारण बूढ़ा है।
आज स्वामी विवेकानन्द की जन्म तिथि है। वे भारत की तरुणाई को जगा रहे थे। 1974 में उभरा युवा आन्दोलन उम्र से वयोवृद्ध लेकिन मन से युवा जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी था। इसे ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ का आन्दोलन कहा जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की सत्ता ने इस आन्दोलन को रौंदा, आपातकाल लगाया। देश कैदखाना बना। लेकिन युवा आन्दोलन ने तानाशाह सत्ता का तख्ता पलट दिया। सत्ता हिंसक रही लेकिन युवा आन्दोलनकारी अहिंसा के व्रती रहे। स्वाधीनता आन्दोलन में महात्मा गांधी ने युवकों में जोश भरा था। वे ‘यंग इण्डिया’ में लिखते थे, युवा भारत से सम्वाद बनाते थे। स्वामी विवेकानन्द ने भी युवकों को विशेष रूप से सम्बोधित किया। युवा ऊर्जा से भरपूर होते हैं। वे नये होते हैं और नया चाहते हैं। उन्हें प्यार चाहिए, प्यार के साथ ज्ञान चाहिए, ज्ञान के साथ अनुभूतिपरक आत्मबोध चाहिए। आत्मबोध के साथ राष्ट्रीय गौरवबोध चाहिए। एक वास्तविक इतिहास बोध चाहिए। विदेशी विद्वानों की विचारधारा से लदा फंदा इतिहासबोध नहीं।
भारत के युवकों में विवेकानन्द की प्रासंगिकता बढ़ गयी है। जन्म की 150वीं वर्षगांठ के उत्सव प्रेरक रहे हैं। भारत की जनसंख्या में 25 साल की उम्र वाले युवकों का प्रतिशत 40 पार हो रहा है। उम्र और आंकड़ेबाजी के हिसाब से भारत ‘तरूण भारत’ हो गया है। भारत को ‘इण्डिया’ बताने वाले युवकों को ‘यंग इण्डिया’ बता रहे हैं। तो क्या भारत 21वीं सदी में ही युवा हुआ है? वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल का भारत अग्निधर्मा युवा राष्ट्र था। अपनी मेधा में दीप्त था। स्वप्नद्रष्टा था। समूचे ब्रह्माण्ड के रहस्य जान लेना चाहता था। यहां सभी देव प्रतीक युवा हैं। तन से और मन से भी। श्रीराम चिर युवा हैं। श्रीकृष्ण की तरुणाई गजब की। संगीत और अस्त्र साथ-साथ। बासुरी से लोक सम्मोहन का संगीत और सुदर्शन चक्र से बुरे का वध। वैदिक ऋषियों ने गहन अनुभूति में स्वयं को ‘अमृत पुत्र’ जाना था। ऋग्वेद, यजुर्वेद और श्वेताश्वतर उपनिषद् में एक साथ आए एक मंत्र में कहते हैं, “श्रृणवन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा-विश्व के विभिन्न लोकों के सभी अमृत पुत्र सुने।”
स्वामी विवेकानन्द ने भी अमृतपुत्र कहते हुए भारतवासियों का आह्वान किया था। ऋग्वेद का ‘पुरुष’ प्रतीक सदा तरुण युवा है। इसके पुरुष सूक्त (10.90) का ‘पुरुष’ यजुर्वेद और अथर्ववेद में भी एक जैसा युवा है। इस पुरुष की महिमा मजेदार है-जो भूतकाल में हो चुका और जो भविष्य में होगा, वह सब यही पुरुष है। यह लगातार बढ़ रहा है अमृतस्वरूप है।” सदा तरुण है यह तत्व। अमृत तत्व मनुष्य की आदिम अभिलाषा है। सब देखते हैं कि मनुष्य मरणधर्मा है। जो आया है, सो जाता है। अमरत्व किसी को नहीं मिला। यह जानते हुए भी अमरतत्व की प्यास है। अमरत्व की शोध में वैज्ञानिक भी श्रमरत हैं। उन्होंने सौ शरद् जीने की स्तुतियां की लेकिन अभीप्सा में अमरत्व ही था। कारण साफ है कि हम सब अमर चेतन से ही जीवन में आए हैं। मृत्यु शरीर छीनती है लेकिन अमरत्व नहीं मरता।
उपनिषदों में युवा चेतना है। कठोपनिषद् में युवा नचिकेता और मृत्यु के देवता का प्रीतिपूर्ण सम्वाद है। नचिकेता के लिए “कुमार होते हुए भी विचार करने लगा” शब्द आए हैं। कथा बड़ी प्यारी है। पिता विश्वजित यज्ञ करवा रहे थे लेकिन बूढ़ी गायों का दान दे रहे थे। युवा नचिकेता ने सीधे पिता से ही प्रश्न पूछा “ऐसी अशक्त, दूध न देने वाली बूढ़ी गायों का दान क्यों दे रहे हैं? यज्ञ में तो प्रिय का दान दिया जाता हे, आप मुझे किसे देंगे? नचिकेता ने तीन बार यही प्रश्न पूंछा, गुस्साए पिता ने कहा “मैं तुझे मृत्यु को देता हूं-मृत्यवे त्वं ददामिति।” (वही 4) कथा के अनुसार नचिकेता मृत्युदेव यम के घर पहुंचा। नचिकेता और उसके पिता के आचरण स्वाभाविक हैं। पिता थे तो ऋषि लेकिन फल की इच्छा से विश्वजित यज्ञ करवा रहे थे। नचिकेता युवा था।
युवा आग्रह असाधारण होते हैं। विवेकानन्द के स्वप्नों वाले युवकों के लिए यह संवाद उपयोगी हैं। यमराज ने उसे तीन मनपसंद उपलब्धियां देने का आश्वासन दिया। नचिकेता ने पहला वर मांगा “मेरे पिता का गुस्सा मेरे प्रति शान्त हो। वे प्रसन्न रहें।” यम ने यह वर दे दिया। नचिकेता ने दूसरा वर मांगा “स्वर्ग में बुढ़ापा नहीं। भय नहीं और न मृत्यु। लेकिन यह स्वर्ग ‘अग्नि विज्ञानी’ को ही मिलता है। मेरी अग्नि विज्ञान में आस्था है, आप मुझे अग्नि विज्ञान पढ़ाइए।” (वही 12, 13) यमराज ने अग्नि विज्ञान बताया।
मृत्यु के बाद के रहस्य विज्ञान की चुनौती हैं। साधारण युवा इस रहस्य के प्रति प्रश्नाकुल नहीं होते। युवा नचिकेता ने तीसरा वर मांगा “मरे हुए मनुष्यों के बारे में संशय हैं। कुछ लोग कहते हैं कि मरने के बाद आत्म तत्व शेष रहता है, कुछ लोग कहते हैं कि नहीं रहता। आप बताए सही क्या हैं?” (वही 20) यह प्रश्न आज भी जस का तस है। यमराज ने कहा कि इस प्रश्न पर प्राचीनकाल से संशय है। तुम कोई दूसरा वर मांगो। नचिकेता ने कहा कि जब पूर्वकाल से ही यह प्रश्न संशय में है और आप इसके ज्ञाता हैं तो इसी प्रश्न का उत्तर दीजिए।” भारत के सुदूर अतीत के युवा मृत्यु रहस्यों को जानने पर जोर दे रहे थे। युवा विवेकानन्द ने भी गुरू रामकृष्ण से ऐसे ही रहस्य जानने की जिज्ञासाएं की थीं।
सांसारिक सुख ढेर सारे। वे स्वाभाविक ही आकर्षित करते हैं। यम ने नचिकेता से कहा, “ढेर सारा धन लो, सौ वर्ष की स्वस्थ आयु लो, पुत्र पौत्र लो, राजा बनौ।” नचिकेता ने कहा “वे क्षणभंगुर हैं। मनुष्य कभी धन से तुष्ट नहीं होता। जीवन मरणधर्मा है। आप कृपया वही बताएं।” यमराज ने नचिकेता की जिज्ञासा की प्रशंसा की। तुमने सांसारिक सुखों की तुलना में आत्मबोध को महत्व दिया है। तुम सत्य धृति हो। हमें तुम्हारे जैसे प्रश्नकत्र्ता ही मिला करें।” यम ने नचिकेता को सारा तत्व ज्ञान दिया और कहा कि यह आत्मतत्व तर्क, प्रवचन या मेधा से नहीं मिलता। कहा, “उठो, जागो, इच्छित बोध पाओ-उत्तिष्ठत् जागृत प्राप्यवरान्नि बोधत्।“ स्वामी विवेकानन्द इस मंत्र को दोहराते थे। भारत के युवकों को ऐसा ही आत्मबोध चाहिए।