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संघर्ष विराम शांति की दिशा में निर्णायक कदम, लेकिन सतर्कता अनिवार्य!

–पाकिस्तान पर भरोसा करना हो सकता है रणनीतिक भूल–अस्थायी विराम, स्थायी समाधान नहीं

प्रयागराज, 11 मई (हि.स)। भारत और पाकिस्तान के बीच ताजा संघर्ष विराम एक स्वागत योग्य कदम है, परन्तु यह समझना आवश्यक है कि यह स्थायी नहीं, बल्कि एक अस्थायी विराम है। यह बातें रक्षा एवं रणनीतिक अध्ययन विभाग, ईश्वर शरण महाविद्यालय प्रयागराज के सहायक प्रोफेसर डॉ. उदय प्रताप सिंह ने कही।

उन्होंने कहा कि भारत ने जिस सामरिक चतुराई और निर्णायक शक्ति का प्रदर्शन करते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के अंतर्गत आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया, वह न केवल देश की सैन्य क्षमता का परिचायक है, बल्कि पाकिस्तान को भेजा गया एक स्पष्ट संदेश भी है कि अब आतंकवाद को और सहन नहीं किया जाएगा। पाकिस्तान द्वारा संघर्ष विराम के कुछ ही घंटों में किए गए उल्लंघनों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत को अपनी चौकसी में कोई ढील नहीं देनी चाहिए। जम्मू, राजौरी, श्रीनगर और गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तानी ड्रोन की उपस्थिति और गोलाबारी की घटनाएं बताती हैं कि पाकिस्तान पर भरोसा करना अभी भी एक रणनीतिक भूल हो सकती है।

–आतंकवाद पर बदली हुई नीतिभारत ने इस बार केवल जवाबी कार्रवाई नहीं की, बल्कि युद्ध के नियम ही बदल दिए। आतंकवाद के विरुद्ध भारत की नीति अब साफ है “हर आतंकी हमला, युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा।” यह बदलाव नीतिगत स्तर पर बेहद महत्वपूर्ण है और यह डोवाल सिद्धांत की सीधी अभिव्यक्ति है, जिसमें प्रतिरोध नहीं, बल्कि प्रतिशोध ही प्राथमिक रक्षा रणनीति बन चुका है। भारतीय वायुसेना ने जिस तरह पाकिस्तान की एयर डिफेंस प्रणाली को भेदकर उसके महत्वपूर्ण आतंकी गढ़ों—बहावलपुर (जैश-ए-मोहम्मद), मुरीदके (लश्कर-ए-तैयबा) और सियालकोट—पर सर्जिकल स्ट्राइक की। वह भारत की तकनीकी और सामरिक श्रेष्ठता का प्रमाण है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भारत अब सिर्फ सीमाओं पर नहीं, बल्कि शत्रु की जमीन पर जाकर जवाब देने में सक्षम है।

–मैशिव रिटेलिएशन की नीतिपाकिस्तान को अब यह समझ लेना चाहिए कि भारत की प्रतिक्रिया अब पुरानी नहीं रही। यदि वह संघर्ष विराम का बार-बार उल्लंघन करता है, तो भारत “मैशिव रिटेलिएशन” यानी विशाल प्रतिकार की नीति अपनाने में देर नहीं करेगा। भारत की सैन्य, कूटनीतिक और मनोवैज्ञानिक तैयारियां अब उस स्तर पर हैं जहाँ वह हर चुनौती का सामना कर सकता है। संघर्ष विराम को लेकर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की चर्चा जरूर हुई, लेकिन भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह फैसला उसकी संप्रभु नीति का हिस्सा था। अमेरिका सहित कई देशों ने भले ही शांति स्थापना में भूमिका निभाने का दावा किया हो, लेकिन असल में यह भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति और सैन्य पराक्रम था जिसने पाकिस्तान को बातचीत करने के लिए विवश किया। पहलगाम की घटना ने भारत को यह अधिकार दे दिया कि वह हर आतंकवादी हमले को युद्ध की कार्रवाई माने और उसी प्रकार से उसका जवाब दे।

–शांति की ओर, लेकिन सतर्कता अनिवार्य निष्कर्षयह संघर्ष विराम भारत के लिए एक निर्णायक कूटनीतिक एवं सैन्य जीत है, लेकिन यह केवल शुरुआत है। पाकिस्तान की नीति और नीयत में परिवर्तन के बिना इस क्षेत्र में स्थायी शांति की कल्पना नहीं की जा सकती। भारत को अब सतर्क रहकर, अपनी नीति में स्पष्टता रखते हुए हर संभावित खतरे से निपटने को तैयार रहना होगा। “शांति की कामना तभी सार्थक है जब देश की रक्षा में अडिग दृढ़ता और नीतिगत स्पष्टता हो। भारत ने यही दिखाया है।”

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