बस्तर दशहरा में आंगा देव का विशेष स्वागत
जगदलपुर (छत्तीसगढ़) में बस्तर दशहरा में आंगा देव को आमंत्रित करने की परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। परंपरा के अनुसार, तहसीलदार के लिखित निमंत्रण पर आंगा देव समेत 350 से अधिक देवी-देवताओं को न्यौता दिया जाता है। किसी विशेष गांव के आंगा देव को बुलाने के लिए श्रद्धालु तहसीलदार को लिखित आवेदन और तयशुदा फीस जमा करते हैं।
आंगा देव की परंपरा और निर्माण
आंगा देव को लकड़ी की डोली में सजाया जाता है और यह आदिवासी समुदायों के लिए मुख्य देवी-देवताओं के समान महत्वपूर्ण होता है। आम तौर पर आंगा देव इरा, साजा, खैर या बेल की लकड़ी से बनाया जाता है। आंगा देव के पुजारी उसके कोको पर चांदी के पतरे का नागफन फिट करते हैं और भुजाओं पर चांदी की पत्तियां तथा मोर पंख लगाते हैं।
उत्सव और अनुष्ठान
आंगा देव का आह्वान और स्थापना एक विशेष अनुष्ठान के माध्यम से होता है। देवता और गांव के लोग मिलकर लकड़ी का चयन करते हैं और परंपरागत रस्मों के अनुसार पेड़ काटा जाता है। इस अवसर पर वर-वधू पक्ष की भूमिका निभाई जाती है और कन्यादान सहित अन्य अनुष्ठान पूरे किए जाते हैं।
परंपरा का महत्व
घनश्याम सिंह नाग के अनुसार, आंगा देव आदिवासी समुदायों के धार्मिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। यह परंपरा यह दर्शाती है कि देवी-देवताओं के साथ-साथ चलायमान देवताओं को भी सम्मान दिया जाता है और उनका पूजन हर शुभ कार्य से पहले किया जाता है।
बस्तर दशहरा में आंगा देव की उपस्थिति उत्सव को और भी पावन बनाती है और यह आदिवासी संस्कृति की जीवंतता को प्रदर्शित करती है।