पटना, 12 नवंबर (हि.स.)।
बिहार की राजनीति ने 2020 से 2025 के बीच एक ऐसा सफर तय किया है जिसने लोकतंत्र की परिभाषा को फिर से गढ़ दिया।
अगर 2020 का चुनाव संख्या की मजबूरी का प्रतीक था, तो 2025 का जनादेश जनता की मजबूती का संकेत बन गया है।
2020 का चुनाव: रणनीति से मिली सत्ता
साल 2020 का विधानसभा चुनाव बिहार की सियासत के इतिहास में सबसे करीबी मुकाबला था।
एनडीए को 125 सीटें और महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं। वोट शेयर में फर्क सिर्फ 0.03% का था।
भाजपा 74 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि नीतीश कुमार की जेडीयू 43 पर सिमट गई।
राजद ने 75 सीटों के साथ खुद को मजबूत विपक्ष के रूप में पेश किया।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक लव कुमार मिश्र के मुताबिक — “2020 का जनादेश संख्या का नहीं, रणनीति का चुनाव था।”
2025 का चुनाव: जनमत की नई लहर
पांच साल बाद 2025 के चुनाव में बिहार ने रिकॉर्ड वोटिंग दर्ज कराई।
67% से अधिक मतदान ने यह साबित कर दिया कि जनता अब सिर्फ बदलाव नहीं, जवाबदेही चाहती है।
महिलाओं और युवाओं की भागीदारी ने इस चुनाव को ऐतिहासिक बना दिया।
विश्लेषक चन्द्रमा तिवारी कहते हैं — “2020 में बिहार ने स्थिरता चुनी थी, 2025 में उसने जवाबदेही मांगी है।”
गठबंधन से जनादेश तक का सफर
इन पांच वर्षों में बिहार की राजनीति ने गठबंधन की मजबूरी से निकलकर जनता की मजबूती तक का सफर पूरा किया।
जहां 2020 में सवाल था — “किसे जिताना है?”
वहीं 2025 में जनता ने तय किया — “कौन हमारे लायक है?”




