📍 बलरामपुर, 10 जून (हि.स.)
जहां आज के दौर में कई लोग अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़ आते हैं, वहीं आंध्र प्रदेश के 38 वर्षीय नारायण राव ने श्रवण कुमार की मिसाल कायम करते हुए अपने 95 वर्षीय लकवाग्रस्त पिता राम नायडू पिल्ले को हाथ ठेले पर बैठाकर 1600 किलोमीटर पैदल यात्रा पर निकले हैं, ताकि वे अपने जीवन की अंतिम इच्छा—रामलला के दर्शन—पूरी कर सकें।
🛕 श्रद्धा की यात्रा: नगर मालव से अयोध्या तक
- यात्रा की शुरुआत 4 मई को आंध्र प्रदेश के नगर मालव गांव से हुई।
- बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर में बीते शाम हिन्दुस्थान समाचार संवाददाता से मुलाकात हुई।
- अब तक 36 दिन में लगभग 1100 किलोमीटर की यात्रा पूरी हो चुकी है।
- अयोध्या अब मात्र 450 किलोमीटर दूर है।
👣 1993 की अधूरी यात्रा
- नारायण राव ने बताया कि वे 1993 में भी पिता को लेकर अयोध्या गए थे।
- लेकिन बाबरी विध्वंस के बाद फैले तनाव के कारण उन्हें पुलिस ने प्रवेश नहीं करने दिया।
- पिता ने कहा, “जब मंदिर बन जाए, तब मुझे पैदल अयोध्या लेकर आना।”
- 33 वर्षों के बाद अब वह वादा निभाया जा रहा है।
🛏️ हाथ ठेले पर जीवन का पूरा आश्रय
- नारायण राव ने स्वनिर्मित हाथ ठेले में भोजन, विश्राम और छत की व्यवस्था की है।
- दिन में लगभग 25-30 किलोमीटर चलते हैं ताकि पिता को थकान न हो।
- कहते हैं, “छत्तीसगढ़ के लोग बहुत अच्छे हैं, हर जगह सम्मान मिला है।”
🧓 पिता की अंतिम इच्छा और पुत्र का समर्पण
- नारायण राव कहते हैं, “पिता की आंखों में केवल राम दर्शन की लालसा है। अगर रास्ते में कुछ हो गया, तो अंतिम संस्कार वाराणसी में करूंगा।”
- यह समर्पण, यह सेवा, यह प्रेम आज की पीढ़ी के लिए एक जीवंत उदाहरण है।