ग्लेशियर बाबा बोले सामाजिक समरसता से ही समर्थ बनेगा भारत
महाकुम्भनगर, 31 जनवरी (हि.स.)। ग्लेशियर बाबा धर्म, अध्यात्म व समाज से जुड़े विषयों पर तार्किक व्याख्या करते हैं। युवाओं में वह लोकप्रिय हैं। हिमालय के ग्लेशियर में उन्होंने 10 वर्षों तक गहन साधना की है। सामाजिक समरसता के निर्माण व गौरक्षा बंदी के लिए वह लगातार आवाज उठाते रहते हैं। आज भी वह दूध से बने किसी उत्पाद का सेवन नहीं करते हैं। योगी चैतन्य आकाश ग्लेशियर बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं। महाकुंभ पधारे ग्लेशियर बाबा से हिन्दुस्थान समाचार के वरिष्ठ संवाददाता बृजनन्दन राजू ने उनसे कई विषयों पर बातचीत की। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के संक्षिप्त अंश…
प्रश्न : सामाजिक भेदभाव आज भी देखने को मिलता है, उपाय क्या है?
उत्तर : जब हम “सर्वे भवन्तु सुखिन:,सर्वे सन्तु निरामया:” कहते हैं तो क्या हम आपस में उस सद्भाव व समरसता से युक्त हैं। हमारे कार्य व हमारी जाति बड़ी है इससे ऊपर उठने की जरूरत है। स्वयं में भेदभाव पहले हम समाप्त करें। स्वयं में समभाव व सद्भावना हो। छुआछूत के नाम पर बहुत बड़े समुदाय को दूषित ठहराया गया। दूषित वह है जो दूषित भावनाओं से दूषित आचार विचार से युक्त है। देह तो सबका चमड़े का है। जीवन जीने का तरीका कितना शुद्ध और अशुद्ध है। आपका आचार—विचार व्यवहार व जीवनशैली जब हम यह भूल गये तब समरसता टूट गयी। भेदभाव चालू हुआ। गुरू परम्पराओं का पालन करते हुए आचार्यों एवं संतों की ओर से भी भेदभाव को दूर करने का प्रयास होना चाहिए। अभी भी बहुत बड़ा वर्ग इससे पीड़ित हो रहा है। अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है। सामाजिक समरसता से ही भारत समर्थ बनेगा।
प्रश्न : धर्म क्या है?
उत्तर: कृष्ण वन्दे जगद्गुरू। जगदगुरू तो भगवान ही होते हैं। हम तो पिण्ड में हैं। वह तो जगत में है। जगत जिनके संकल्प से पैदा हो जाता है। जिनके संकल्प से विलय हो जाता है वह परमेश्वर भी इस धरा पर धर्म की रक्षा के लिए आता है। यदा—यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:। हमारा धर्म है कि अपने धर्म की रक्षा करें बशर्ते जानें धर्म क्या है। धर्म से जुड़ा है सत्य सनातन। सनातन का अर्थ है जो अति प्राचीन है। हजार दो हजार वर्षों में सम्प्रदाय आये। हमारे मानवीय जीवन को चलाने का जो तरीका है जिससे हम बंधे हें उसका नाम संविधान है। ऐसे ही समपूर्ण सृष्टि के जीवन जीने का जो विधान है उसका नाम है धर्म। धर्म की चार सीढ़ी है। वह है धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष। जीवन को धर्ममय रखिए। सनातन धर्म कभी किसी की भावना पर चोट नहीं पहुंचाता, लेकिन अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च:। हम उस धर्म व उस सभ्यता से आते हैं। अहिंसा का पालन करते हैं।
प्रश्न : आपकी आध्यात्मिक यात्रा कैसे शुरू हुई?
उत्तर: हम 10 वर्ष की अवस्था में गुरूकुल चले गये थे। सात वर्ष गुरूकुल में रहे। शिव जी का अभिषेक करना हमें अच्छा लगता था। बाल्टी मग उठा कर अभिषेक करते रहते थे। इसके बाद जयपुर में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में शास्त्री करने गया। हमारे दादा जी का जब शरीर छूटा तो वैराग्य हो गया। जीवन की वास्तविकता समझ में आ गयी। उस समय हमारी अवस्था 18 वर्ष थी। गायत्री की मंत्र दीक्षा ली। वहां से अमरकंटक फिर चार हजार किलोमीटर नर्मदा प्रदक्षिणा की। 10 वर्ष हिमालय में गहन साधना की।
प्रश्न : आपका ग्लेशियर बाबा नाम कैसे पड़ा?
उत्तर: पूरी मानवता के लिए मैंने हिमालय के ग्लेशियर में कई वर्षों तक साधना करता रहा। वहां एक क्षेत्र है पिण्डारी ग्लेश्यिर। उसको भव्य व दिव्य स्वरूप प्रदान करने का काम सरकार व समाज के साथ मिलकर किया। जब मंदिर बन गया तो राजनीति प्रारम्भ हो गयी। वहां से नाम जुड़ गया ग्लेशियर बाबा।
प्रश्न : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री महाकुम्भ को भव्य दिव्य बनाने में लगे हैं उनके बारे में आप क्या कहेंगे?
उत्तर : प्रयागराज महाकुम्भ आज विश्व के ध्यान आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। महाकुम्भ को भव्य स्वरूप देने वाले योगी आदित्यनाथ एक दिव्य विभूति हैं। उनको साक्षात भगवान भोलेनाथ ने एक विशेष कार्य के लिए इस धरा पर उतारा है। उनका जो त्याग व बलिदान है इस जन्म का नहीं कई जन्मों का है। हम जो देख पा रहे हैं वह बहुत शीर्ष पर जाने वाले हैं। हमारी शुभकामनाएं हैं। योगी आदित्यनाथ का त्याग भारत को विश्वगुरू बनायेगा। योगी के त्याग से साधुओं को सीखना चाहिए। हालांकि वह जिस परम्परा से हैं वहां हठयोग व त्याग की पराकाष्ठा रही है। गुरू मस्त्येन्द्रनाथ की परम्परा को लेकर बढ़ने वाली नाथ परम्परा के योगी पहले स्वयं पर आधिपत्य व नियंत्रण करते है जिसका नाम है संयम जब तक स्वयं पर संयम नहीं होगा समरसता व सदभावना निर्माण नहीं होगी।
प्रश्न : युवाओं के लिए आपका क्या संदेश है?
उत्तर: युवाओं के लिए संदेश है जागो अब समय नहीं है सोने का। महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी,चन्द्रशेखर आजाद व भगत सिंह जैसे वीरों ने जो बलिदान दिया अपनी मातृभूमि के लिए अपने को उऋण कर दिया। क्या हम उऋण हो रहे हैं। हमारे ऊपर मातृभमि का,बलिदानियों का, ऋषि परम्पराओं का ऋण है। हमारे पूर्वज दूसरी सभयताओं के सामने झुके नहीं। क्या हम उस धारा पर जी रहे हैं? हम कहेंगे सभी सम्प्रदाय के भाइयों को मिलाएं उनमें भेदभाव न करें। उनको एक करें चाहे जिस गुरू जिस परम्परा का हो सब गुरूओं की धारा परमसत्ता गुरूओं में न बंटें। ग्रन्थों में न बंटें। मूर्तियों में न बंटे। भगवानों में न बंटें। बनना है तो पहले मानव बनें और प्रकृति का रक्षण पोषण करें।