नौ रूपों के साथ मैया स्वागत — तरीका जानें और भक्ति से करें आराधना!
- शारदीय Navratri 2025 उस पावन समय की शुरुआत है जब नौ रूपों के साथ मैया यानी माता दुर्गा का आगमन होता है।
- इन नौ दिनों में हर रूप का अपना विशेष महत्व है और उनका स्वागत भी अलग-अलग विधियों से किया जाता है।
- इस article में जानिए उस शुभ आरंभ से लेकर कन्या पूजन तक की प्रमुख प्रक्रियाएँ।
1. Navratri 2025 घट स्थापना (Kalash Sthapana)
नवरात्रि का आरंभ घट स्थापना से होता है।
घर में साफ-सफाई, पूजा-स्थान की तैयारी, वासुती मिट्टी या कुश से सजावट और कलश में जल भरकर, नारियल एवं आम के पत्तों से मंत्रोच्चारण के साथ स्थापना की जाती है।
यह विधि माँ के आगमन का निमंत्रण होती है।
2. नौ रूपों की आराधना—Navadurga
हर दिन माँ दुर्गा के एक रूप—जैसे शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, आदि—की पूजा अर्चना होती है।
प्रत्येक रूप की पूजा में विशेष भोग अर्पित किया जाता है, जैसे शैलपुत्री को घी, ब्रह्मचारिणी को शक्कर, चंद्रघंटा को खीर आदि।
3. भजन–कीर्तन और आरती
पूजा के दौरान भव्य भजन, कीर्तन और आरती होती है।
दीपक और अगरबत्तियाँ जलाकर मां का सत्कार किया जाता है और श्रद्धालु मन से मंत्रों का जाप करते हैं।
4. Navratri 2025 व्रत और उपवास का पालन
नवरात्रि के दौरान श्रद्धालु उपवास रखते हैं और विशेष फलाहार, डेयरी, और व्रत-उपयोगी अन्न जैसे सिंघाड़ा आटा, कुट्टू का आटा आदि का सेवन करते हैं।
यह शरीर और मन दोनों को शुद्ध करने में सहायक होता है।
5. Navratri 2025 कन्या पूजन (Kanya Puja)
आठवें या नौवें दिन कन्या पूजन का पर्व मनाया जाता है।
नौ कन्याओं को देवी दुर्गा का रूप मानकर उनके पाद स्नान, पूजा और भोजन कराया जाता है।
फिर उन्हें वस्त्र, प्रसाद और आशीर्वाद दिया जाता है।
6. आयुध पूजा (Ayudha Puja)
नवमी तिथि को आयुध पूजा की जाती है,
जिसमें पूजा के उपकरण, पुस्तकें, वाहन, वसंतायुध आदि को साफ करके और सजाकर मां सरस्वती एवं दुर्गा की पूजा की जाती है।
यह समर्पण एवं श्रद्धा की अभिव्यक्ति है।
7. नवमी/विजयदशमी एवं विदाई
नवरात्रि के बाद विजयदशमी (दशहरा) मनाया जाता है। उस दिन मां दुर्गा का विसर्जन होता है
और बंगाली परंपरा में सिंदूर खेला जैसे उत्सव होते हैं,
जहां महिलाएं एक-दूसरे पर सिंदूर लगाए बिना दुर्गा को विदा करती हैं।