स्वामी विवेकानंद ने अपने एक भाषण में कहा था कि यदि हमें गौरव से जीने की भावना जागृत करनी है और यदि हम अपने हृदय में देशभक्ति के बीज बोना चाहते हैं तो हमें हिंदू राष्ट्रीय पंचांग की तिथियों का आश्रय लेना होगा। जो कोई भी विदेशियों की तिथियों पर निर्भर रहता है वह गुलाम बन जाता है और आत्मसम्मान खो देता है। स्वामी विवेकानंद की यह उद्घोषणा भारतीय संस्कृति और काल गणना के महत्त्व को रेखांकित करता है। साथ ही भारत के नीति निर्माताओं को भी मार्गदर्शन देती है कि उन्हें राष्ट्र और समाज के उत्थान और उसके आत्मविश्वास को सुदृढ़ करने के लिए क्या करना चाहिए।
हाल ही राजस्थान सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेकर राजस्थान राजस्थान का स्थापना दिवस भारतीय तिथि के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाने की घोषणा की है। विधानसभा के पटल पर रखा गया मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का ये निर्णय भारत की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने की ओर महत्वपूर्ण कदम है। निश्चित तौर पर इससे राजस्थान दिवस समारोह राजस्थान की आम जनता का उत्सव बन सकेगा।
गौरतलब है कि भारतीय नववर्ष मनाने के लिए गठित नववर्ष समारोह समिति गत 24 वर्षों से राजस्थान सरकार से लगातार मांग कर रही थी कि राजस्थान स्थापना दिवस 30 मार्च के बजाय वर्ष प्रतिपदा नव संवत्सर पर मनाया जाए। इसके पीछे उनका तर्क है कि राजस्थान की स्थापना हिन्दू पंचांग के अनुसार इसी दिन शुभ मुहूर्त देखकर हुई थी। उस दिन 30 मार्च थी। बाद में वर्ष प्रतिपदा को भुला दिया गया और 30 मार्च को स्थापना दिवस मनाया जाने लगा।
30 मार्च 1949 को संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन के अवसर पर तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी अपने भाषण में इस बात का उल्लेख किया था। अपने महत्वपूर्ण भाषण में तब उन्होंने कहा था—“राजपूताना में आज नए वर्ष का प्रारंभ है। यहां आज के दिवस वर्ष बदलता है। शक बदलता है। यह नया वर्ष है। तो आज के दिन हमें नए महा-राजस्थान के महत्व को पूर्ण रीति से समझ लेना चाहिए। आज अपना हृदय साफ कर ईश्वर से हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें राजस्थान के लिए योग्य राजस्थानी बनाये। राजस्थान को उठाने के लिए राजपूतानी प्रजा की सेवा के लिए ईश्वर हमको शक्ति और बुद्धि दे। आज इस शुभ दिन हमें ईश्वर का आशीर्वाद मांगना है। मैं आशा करता हूं कि आप सब मेरे साथ राजस्थान की सेवा की इस प्रतिज्ञा में इस प्रार्थना में सम्मिलित होंगे। जय हिंद!”
बल्लभ भाई पटेल के भाषण की बातें राजस्थान का स्थापना दिवस समारोह वर्ष प्रतिपदा जैसे शुभ अवसर पर आयोजित करने के लिए पर्याप्त है।
भारतीय नववर्ष महज़ तिथि का बदलना नहीं है। यह वह अवसर है जब प्रकृति पूरी तरह सजधज कर दुल्हन का सा स्वरूप धारण करती है। वसंत ऋतु की शुरुआत होती है, जब पेड़-पौधों में नए पत्ते और फूल खिलते हैं। वातावरण में उत्साह का संचार होता है। इसका खगोलीय महत्व है, जिसका विस्तार से वर्णन भारतीय शास्त्रीय परंपरा में है ।
वर्ष प्रतिपदा एक खगोलीय गणना है, जो ब्रह्मांडीय घटनाओं से जुड़ा हुआ है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक पूर्ण चक्र पूरा करती है। इस दिन दिन-रात बराबर होते हैं, जो संतुलन और नए जीवन का प्रतीक है। इसके अतिरिक्त भारत में अनेक ऐतिहासिक घटनाएं हैं जो इस दिन से जुड़ी है, जो सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन को प्रेरणा देती है। राजा विक्रमादित्य ने इसी दिन विक्रम संवत की स्थापना की थी। भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। यह सिखों के दूसरे गुरु श्रीअंगद देव जी का जन्मदिन भी है। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी इसी दिन हुआ था।
राजस्थान के इतिहास की बात करें तो इसे पहले राजपूताना के नाम से जाना जाता था। तब यहाँ अनेक रियासतें थीं, जिन्हें मिलाकर यह राज्य बना। राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में पूरा हुआ। इसकी शुरुआत 18 अप्रैल 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली रियासतों के विलय से हुई। विभिन्न चरणों में रियासतें जुड़ती गईं तथा अन्त में 1949 में वर्ष प्रतिपदा (30 मार्च) के दिन जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों के विलय से “वृहत्तर राजस्थान संघ” बना। इसे ही राजस्थान स्थापना दिवस कहा जाता है। इसमें सरदार वल्लभभाई पटेल की सक्रिय भूमिका थी। वे सरकार की विलय योजना के अंतर्गत विभिन्न रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने का काम कर रहे थे।
राजस्थान सरकार का राजस्थान स्थापना दिवस को वर्ष प्रतिपदा पर मनाने का निर्णय ऐतिहासिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक रूप से पूर्णत: उचित है। यह केवल एक तिथि परिवर्तन नहीं बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान, स्वाभिमान और गौरवशाली परंपराओं को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सरदार पटेल के शब्दों को याद रखते हुए, यह कहा जा सकता है कि यह निर्णय राजस्थान को गौरवशाली अतीत से जोड़ते हुए उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाएगा।
पुनश्च: जन्म कुंडली और विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार हम ग्रह-नक्षत्रों की दिशा पर आधारित तिथियों के अनुसार तय करते हैं लेकिन अपनी सुविधा के लिए उनकी वर्षगांठ के लिये ग्रेगोरियन कैलेंडर पर निर्भर हो जाते हैं।