सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
देश की सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के तहत दो साल से अधिक समय से हिरासत में रह रहे एक आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी। यह मामला लालकिले के पास हुई विस्फोटक गतिविधियों की जांच से जुड़ा बताया जा रहा है।
जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब आरोपी के पास से आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई है और साजिश की तैयारी के आरोप हैं, तो यह स्पष्ट रूप से यूएपीए के दायरे में आता है।
अदालत की सख्त टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि आरोपी के पास से केवल इस्लामिक साहित्य मिला था, कोई विस्फोटक या आरडीएक्स नहीं।
इस पर जस्टिस मेहता ने कहा —
“आपने आईएसआईएस की तरह का व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया। इससे ज़्यादा क्या खोज रहे हैं? इसके पीछे की मंशा क्या थी?”
जब वकील ने कहा कि आरोपी 70% दिव्यांग है, तो कोर्ट ने पूछा — “क्या वह मानसिक रूप से दिव्यांग है या शारीरिक रूप से?”
कोर्ट ने दिया ट्रायल में तेजी का निर्देश
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस चरण पर जमानत देना उचित नहीं है। साथ ही ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि दो वर्षों के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरी की जाए ताकि न्याय में देरी न हो।
यूएपीए मामलों पर न्यायालय का रुख
हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए मामलों में जमानत देने को लेकर सख्त दृष्टिकोण अपनाया है। अदालत का कहना है कि जब तक आरोप “प्रथम दृष्टया” गंभीर हों, तब तक रिहाई से जांच प्रभावित हो सकती है।




